पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१२९

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१३० मानसरोवर (८) चौधरी और चौधराइन का मत पाकर कोकिला विवाह का आयोजन करने लगी। कपड़े बनवाये जाने लगे । बरतनो की दूकानें छानी जाने लगीं और गहनो के लिए सुनार के पास 'आर्डर' जाने लगे। लेकिन न-मालूम क्यों भगतराम के मुख पर प्रसन्नता का चिह्न तक न था । श्रद्धा के यहाँ नित्य की भाति जाता ; किंतु उदास, कुछ भूला हुअा-सा बैठा रहता। घटों आत्म विस्मृति की अवस्था में, शून्य दृष्टि से अाकाश अथवा पृथ्वी की ओर देखा करता । श्रद्धा उसे अपने कीमती कपड़े और जड़ाऊ गहने दिखलाती । उसके अग-प्रत्यग से आशात्रों की स्फूर्ति छलकी पड़ती थी । इस नशे में वह भगत- राम की आँखों में छिपे हुए आंसुओं को न देख पाती थी। इधर चौधरी भी तैयारियां कर रहे थे । बार-बार शहर पाते और विवाह के सामान मोल ले जाते । भगतराम के स्वतंत्र विचारवाले मित्र उसके भाग्य पर ईर्ष्या करते थे। अप्सरा-जैसी सुंदर स्त्री, कालं का ख़जाने-जैसी दौलत, दोनो साथ ही किसे मयस्सर होते हैं ? किंतु वह जो मित्रों की ईर्ष्या, कोकिला की प्रसन्नता, श्रद्धा की मनोकामना और चौधरी और चौधराइन के शानद का कारण था, छिप-छिपकर रोता था, अपने जीवन से दुःखी था। चिरारा तले अँधेरा छाया हुआ था। इस छिपे हुए तूफान की किसी को भी खबर न थी, जो उसके हृदय में हाहाकार मचा रहा था । ज्यों-ज्यो विवाह का दिन समीप श्राता था, भगतराम की बनावटी उमंग भी ठंडी पड़ती थी। जब चार दिन रह गये, तो उसे हलका-सा ज्वर श्रा गया । वह श्रद्धा के घर भी न जा सका । चौधरी और चौधराइन तथा अन्य बिरादरी के लोग भी आ पहुंचे थे ; किंतु सब-के-सब विवाह की धुन में इतने मस्त थे कि किसी का भी ध्यान उसकी अोर न गया। दुसरे दिन भी वह घर से न निकल सका ? श्रद्धा ने समझा कि विवाह की रीतियो से छुट्टी न मिली होगी। तीसरे दिन चौधराइन भगतराम को बुलाने गई, तो देखा कि वह सहमी हुई विस्फारित आँखों से कमरे के एक कोने की ओर देखता हुपा दोनो हाथ सामने किये, पीछे हट रहा है, मानो अपने को किसी के वार से बचा रहा हो । चौधराइन ने घबराकर पूछा-बच्चा, कैसा जी 3B