पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१३०

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आगा-पीछा १३१ .... है ? पीछे इस तरह क्यों चले जा रहे हो! यहाँ तो कोई नहीं है। भगतराम के मुख पर पागलों जैसी अचेतनता थी। आँखों में भय छाया हुअा था । भीत स्वर मे बोला-नहीं अम्माजी देखो, वह श्रद्धा चली श्रा रही है ! देखो, उसके दोनों हाथों मे दो काली नागिने हैं। वह मुझे उन नागिनो से डसवाना चाहती है | अरे अम्मा ! देखो, वह नजदीक आ गई श्रद्धा ! श्रद्वा !! तुम मेरी जान की क्यों बैरिन हो गई हो ! क्या मेरे असीम प्रम का यही परिणाम है ? मैं तो तुम्हारे चरणों पर बलि होने के लिए सदैव तत्पर था । इस जीवन का मूल्य ही क्या है। तुम इन नागिनों को दूर फेक दो। मैं यहीं तुम्हारे चरणों पर लेटकर यह जान तुम पर न्योछावर कर दूगा।... है, हैं, तुम न मानोगी? यह कहकर वह चित गिर पड़ा। चौधराइन ने लपककर चौधरी को बुलाया। दोनों ने भगतराम को उठाकर चारपाई पर लिटा दिया। चौधरी का ध्यान किसी आसेब की ओर गया। वह तुरत ही लौग और राख लेकर ग्रासेब उतारने का आयोजन करने लगे । स्वय यत्र-मत्र में निपुण थे। भगत- राम का सारा शरीर ठडा था , किंतु सिर तवे की तरह तप रहा था। रात को भगतराम कई बार चौककर उठा। चौधरी ने हर बार मंत्र फूंककर अपने ख़याल से पासेब को भगाया। चौधराइन ने कहा- कोई डाक्टर क्यों नहीं बुलवाते । शायद दवा से कुछ फायदा हो । कल व्याह और आज यह हाल । चौधरी ने निःशक भाव से कहा-डाक्टर श्राकर क्या करेगा। वही पीपलवाले बाबा तो हैं। दवा-दारू करना उनसे और रार बढ़ाना है । रात जाने दो। सवेरे होते ही एक बकरा और एक बोतल दारू उनकी भेंट की जायगी । बस, और कुछ करने की जरूरत नहीं । डाक्टर बीमारी की दवा करता है कि हवा-बयार की ! बीमारी उन्हें कोई नहीं है, कुल के बाहर व्याह करने ही से देवता लोग रूठ गये हैं। सवेरे चौधरी ने एक बकरा मॅगवाया । स्त्रियाँ गाती-बजाती हुई देवी के चौतरे की ओर चलीं। जब लोग लौटकर आये, तो देखा कि भगतराम की हालत खराब है। उसकी नाड़ी धीरे-धीरे वद हो रही थी। मुख पर मृत्यु-