पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१३९

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१४० मानसरोवर तब

भोंदू ने इसका कुछ जवाब न दिया। उसकी स्त्री कोई दूसरा घर कर ले, यह कल्पना उसके लिए अपमान से भरी थी। आज बटी ने पहिली बार यह धमकी दी। अब तक भोंदू इस तरफ से निश्चित था। अब यह नई संभावना उसके सम्मुख उपस्थित हुई। उस दुर्दिन को वह अपना काबू चलते अपने पास न आने देगा। आज भोंदू की दृष्टि मे वह इज्जत नहीं रही, वह भरोसा नहीं रहा । मज- बूत दीवार को टिकौने की जरूरत नहीं ! जब दीवार हिलने लगती है, हमें उसको सँभालने की चिंता होती है। श्राज भोदू को अपनी दीवार हिलती हुई मालूम होती थी। अाज तक वटी अपनी थी। वह जितना अपनी ओर से निश्चिन्त था, उतना ही उसकी ओर से भी था । वह जिस तरह खुद रहता था, उसी तरह उसको रखता था। जो खुद खाता था, वही उसको खिलाता था। उसके लिए कोई विशेष फिक्र न थी ; पर आज उसे मालूम हुआ कि वह अपनी नहीं है, अब उसका विशेष रूप से सत्कार करना होगा, विशेष रूप से दिल. जोई करनी होगी। सूर्यास्त हो रहा था। उसने देखा, उसका गधा चरकर चुप चाप सिर झुकाये चला आ रहा है। भोंदू ने कभी उसकी खाने-पीने की चिंता न की थी ; क्योंकि गधा कभी किसी और को अपना स्वामी - बनाने की धमकी न दे सकता था। भोंदू ने बाहर आकर आज गधे को पुचकारा, उसकी पीठ सहलाई और तुरत उसे पानी पिलाने के लिए डोल और रस्सी लेकर चल दिया । ( २ ) इसके दूसरे ही दिन कस्बे मे एक धनी ठाकुर के घर चोरी हो गई। उस रात को भोंदू अपने डेरे पर न था । बटी ने चौकीदार से कहा-वह जगल से नहीं लौटा। प्रातःकाल भोंदू आ पहुंचा। उसकी कमर में रुपयों की एक थैली थी। कुछ सोने के गहने भी थे । बंटी ने तुरंत गहनों को ले जाकर एक वृक्ष की जड़ मे गाड दिया । रुपयो की क्या पहिचान हो सकती थी। भोंदू ने पूछा-अगर कोई पूछे, इतने सारे रुपये कहाँ मिले, तो क्या O 2 कहोगी।