पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१४५

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१४६ मानसरोवर ( ५ ) भोदू ने सशंक होकर पूछा-धनी क्यो हटाते हो ? एक चौकीदार ने कहा-तेरी औरत ने एकबाल कर लिया। भोंदू की नाक, आँख, मुँह से पानी जारी था। सिर चक्कर खा रहा था। गले की आवाज़ बद-सी हो गई थी ; पर वह वाक्य सुनते ही वह सचेत हो गया । उसकी दोनों मुट्ठियां बंध गई । बोला-क्या कहा ! 'कहा क्या, चोरी खुन गई । दारोगाजी माल बरामद करने गये हुए हैं । पहले ही एकबाल कर लिया होता, तो क्यों इतनी सांसत होती ।' भोंदू ने गरजकर कहा-वह झूठ बोलती है । 'वहीं माल बरामद हो गया, तुम अभी अपनी ही गा रहे हो ।' परम्परा की मर्यादा की अपने हाथों भंग होने की लज्जा से भोदू का मस्तक झुक गया। इस घोर अपमान के बाद अब उसे अपना जीवन दया और घृणा और तिरस्कार इन सभी दशाओ से निखिद जान पड़ता था। वह अपने समाज मे पतित हो गया था। सहसा बटी पाकर खड़ी हो गई और कुछ कहना ही चाहती थी कि भोदू की रौद्रमुद्रा देखकर उसकी ज़बान बद हो गई। उसे देखते ही भोंदू की आहत मर्यादा किसी आहत सर्प की भांति तड़प उठी । उसने बटी को अगागे-सी तपती हुई लाल आँखों से देखा। उन आँखों मे हिंसा की श्राग जल रही थी। बटी सिर से पांव तक काप उठी। वह उलटे पांव वहां से भागी । किसी देवता के अग्निवाण के समान वह दोनो अगारो की सी आँखे उसके हृदय में चुभने लगीं। थाने से निकलकर बटी ने सोचा, अब कहाँ जाऊँ । भोदू उसके साथ होता तो वह पड़ोसियों के तिरस्कार को सह लेती। इस दशा में उसके लिए अपने घर जाना असम्भव था। वह दोनो अगारे की-सी आँखे उसके हृदय मे चुभी जाती थीं; लेकिन कल की सौभाग्य-विभूतियों का मोह उसे डेरे की ओर खींचने लगा। शराब की बोतल अब भी भरी धरी थी। फुलौड़ियाँ छींके पर हाड़ी में धरी थीं। वह तीव्र लालसा, जो मृत्यु को सम्मुख देख कर .