पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१४९

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सती मुलिया को देखते हुए उसका पति कल्लू कुछ भी नहीं है । फिर क्या कारण है कि मुलिया संतुष्ट और प्रसन्न है और कल्लू चिंतित और सशकित ? मुलिया को कौड़ी मिली है, उसे दूसरा कौन पूछेगा ! कल्लू को रत्न मिला है, उसके सैकड़ों ग्राहक हो सकते हैं। खास कर उसे अपने चचेरे भाई राजा से बहुत खटका रहता है। राजा रूपवान है, रसिक है, बातचीत मे कुशल है, स्त्रियों को रिझाना जानता है। इससे कल्लू मुलिया को बाहर नहीं निकलने देता। उसपर किसी की निगाह भी पढ़ जाय, यह उसे असह्य है । वह अब रात-दिन मेहनत करता है, जिससे मुलिया को किसी बात का कष्ट न हो । उसे न जाने किस पूर्व जन्म के संस्कार से ऐसी स्त्री मिल गई है। उसपर प्राणों को न्योछावर कर देना चाहता है। मुलिया का कभी सिर भी दुखता है, तो उसकी जान निकल जाती है । मुलिया का भी यह हाल है कि जब तक वह घर नहीं आता, मछली की भांति तड़पती रहती है। गांव में कितने ही युवक हैं, जो मुलिया से छेड़छाड़ करते रहते हैं ; पर उस युवती को दृष्टि में कुरूप कलुश्रा संसार भर के आदमियों से अच्छा है । एक दिन राजा ने कहा -भाभी, भैया तुम्हारे जोग न थे। मुलिया बोली-भाग मे तो बह लिखे थे ; तुम कैसे मिलते ? राजा ने मन में समझा, बस अब मार लिया है। बोला-विधि ने यही 1 तो भूल की। मुलिया मुस्कराकर बोली-अपनी भूल तो वही सुधारेगा । राजा निहाल हो गया। ( २ ) तीज के दिन कल्लू मुलिया के लिए लट्ठ की साड़ी लाया । चाहता तो था कोई अच्छी साड़ी ले ; पर रुपये न थे और बजाज़ ने उधार न माना । राजा भी उसी दिन अपने भाग्य की परीक्षा करना चाहता था। एक सुदर चु दरी लाकर मुलिया को भेट की। मुलिया ने कहा-मेरे लिए तो साड़ी आ गई है।