पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१५

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२४ मानसरोवर पर आश्चर्य है । उसे कोई शिकायत हो जाती तो मेरे प्राण नखो में समा जाते । डाक्टर के पास दौड़ता, दवाएँ लाता और मोहन की खुणमद करके दबा पिलाता । सदैव यह चिंता लगी रहती थी, कि कोई बात उसकी इच्छा के विरुद्ध न हो जाय । इस वेचारे का यहां मेरे सिवा दुसरा कौन है। मेरे चंचल मित्रों मे से कोई उसे चिढ़ाता या छेड़ता, तो मेरी त्योरिया बदल जाती थीं। कई लडके तो मुझे बूढी दाई कहकर चिढ़ाते थे मै हँसकर टाल देता था । मै उसके सामने एक अनुचित शब्द भी मुंह से न निक लता । यह शका होती थी, कि कहीं मेरी देखा-देखी यह भी ख़राब न हो जाय । मै उसके • सामने इस तरह रहना चाहता था, कि वह मुझे अपना श्रादर्श समझे और इसके लिए यह मानी हुई बात थी कि मैं अपना चरित्र सुधारूँ । वह मेरा नौ बजे सोकर उठना, बारह बजे तक मटरगश्ती करना, नई-नई शरारतों के मसूवे बांधना और अध्यापकों की आँख बचाकर स्कूल से उड़ जाना, सब आप ही आप जाता रहा । स्वास्थ्य और चरित्र-पालन के सिद्धातों का मैं शत्रु' था ; पर अब मुझसे बढ़कर उन नियमो का रक्षक दूसरा न था । ईश्वर का उपहास किया करता था, मगर अब पक्का आस्तिक हो गया था । वह बड़े सरल भाव से पूछता, परमात्मा सब जगह रहते हैं, तो मेरे पास भी रहते होंगे। इस प्रश्न का मज़ाक उड़ाना मेरे लिए असभव था। मैं कहता- हाँ परमात्मा तुम्हारे, हमारे सबके पास रहते हैं और हमारी रक्षा करते हैं । यह आश्वासन पाकर उसका चेहरा आनद से खिल उठता था। कदाचित् वह परमात्मा की सत्ता का अनुभव करने लगता था। साल ही भर में मोहन कुछ से कुछ हो गया । मामा साहब दोबारा आये, तो उसे देखकर चकित हो गये । आँखों में आंसू भरकर बोले- 'बेटा ! तुमने इसको जिला लिया, नहीं तो मैं निराश हो चुका था । इसका पुनीत फल तुम्हें ईश्वर देंगे। इसकी मा स्वर्ग में बैठी हुई तुम्हे श्राशीर्वाद दे रही है ।' सूर्यप्रकाश की आँखे उस वक्त भी सजल हो गई थीं। मैंने पूछा-मोहन भी तुम्हें बहुत प्यार करता होगा ? सूर्यप्रकाश के सजल नेत्रों में हसरत से भरा हुआ आनंद चमक उठा, बोला-वह मुझे एक मिनट के लिए भी न छोड़ता था। मेरे साथ बैठता,