पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१५०

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सती राजा बोला-मैंने देखी है। तभी तो मैं इसे लायक नहीं है । भैया को किफायत भी सूझती है, तो ऐसी बातो मे । मुलिया कटाक्ष करके बोली--तुम समझा क्यो नहीं देते ? राजा पर एक कुल्हड़ का नशा चढ गया। बोला--बूढा तोता नहीं पढ़ता है। मुलिया-मुझे तो लट्ठ की साड़ी ही पसद है। राजा-ज़रा यह चुंदरी पहनकर देखो, कैसी खिलती है । मुलिया--जो लट्ठा पहनाकर खुश होता है, वह चु दरी पहन लेने से खुश न होगा। उसे चुंदरी पसद होती, तो चु दरी ही लाता। राजा-उन्हें दिखाने का काम नहीं है। मुलिया विस्मय से बोली-मैं क्या उनसे बिना पूछे ले लूंगी? राजा---इसमे पूछने की कौन-सी बात है । जब वह काम पर चला जाय, पहन लेना। मैं भी देख लूँगा। मुलिया ठट्ठा मारकर हँसती हुई बोली--यह न होगा देवरजी। कहीं देख ले, तो मेरी सामत ही पा जाय । इसे तुम लिये जाओ। राजा ने आग्रह करके कहा-इसे न लोगी भाभी, तो मैं ज़हर खाके सो रहूँगा। मुलिया ने साड़ी उठाकर पाले पर रख दी और बोली--अच्छा लो, अब तो खुश हुए। राजा ने उँगली पकड़ी--अमी तो भैया नहीं हैं, जरा पहन लो। मुलिया ने अंदर जाकर चु दरी पहन ली और फूल की तरह महकती, दमकती बाहर आई। राजा ने पहुंचा पकड़ने को हाथ फैलाया । बोला-ऐसी जी चाहता है कि तुम्हें लेकर भाग जाऊं। मुलिया उसी विनोद-भाव से बोली-जानते हो, तुम्हारे भैया का क्या हाल होगा। यह कहते हुए उसने किवाड़ बंद कर लिये। राजा की ऐसा मालूम हुआ थाली परोसकर उसके सामने से उठा ली गई। 9