पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१७३

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१७४ मानसरोवर तुम मेरे घर में श्राश्रो । मेरी आँखें फूटी हैं, जो तुमसे केराया मांगने जाऊँगी! इन सांत्वना से भरे हुए सरल शब्दो ने सुशीला के हृदय का बोझ हल्का कर दिया। उसने देखा, सच्ची सजनता भी दरिद्रों और नीचों ही के पास रहती है । बड़ों की दया भी बड़ी होती है, अहंकार का दूसरा रूप ! इस खटकिन के साथ रहते हुए सुशीला को छः महीने हो गये थे । सुशीला का उससे दिन-दिन स्नेह बढ़ता जाता था। वह जो कुछ पाती, लाकर सुशीला के हाथ में रख देती। दोनों बा उसकी दो आँखे थीं। मजाल न थी कि पड़ोस का कोई आदमी उन्हें कड़ी आँखों से देख ले। बुढ़िया दुनिया सिर पर उठा लेती। संतलाल हर महीने कुछ-न-कुछ दे दिया करता था। इससे रोटी-दाल चली जाती थी। कातिक का महीना था-ज्वर का प्रकोप हो रहा था। मोहन एक दिन खेलता-कूदता बीमार पड़ गया और तीन दिन तक अचेत पड़ा रहा । ज्वर इतने जोर का था कि पास खड़े रहने से लपट-सी निकलती थी। बुढ़िया श्रोझे सयानो के पास दौड़ती फिरती थी; पर ज्वर उतरने का नाम न लेता था। सुशीला को भय हो रहा था, यह टाइफाइड है। इससे उसके प्राण सूख रहे थे। चौथे दिन उसने रेवती से कहा-बेटी, तूने बड़े पचजी का घर तो देखा है। जाकर उनन कह-भैया बीमार हैं, कोई डाक्टर भेज दें। रेवती को कहने भर की देर थी। दौड़ती हुई सेठ कुबेरदास के पास गई। कुबेरदास बोले-डाक्टर की फीस १६) है । तेरी मा दे देगी ? रेवती ने निराश होकर कहा-अम्मा के पास रुपये कहाँ हैं। कुबेरo-तो फिर किस मुंह से मेरे डाक्टर को बुलाती है। तेरा मामा कहाँ हैं ? उनसे जाकर कह, सेवा-समिति से कोई डाक्टर बुला ले जाय, नहीं तो खैराती अस्पताल मे क्यों नहीं लड़के को ले जाती ? या-अभी वही पुरानी बू समाई हुई है। कैसी मूर्ख स्त्री है, घर में टका नहीं और डाक्टर का हुकुम लगा दिया । समझती होगी, फीस पचजी दे देंगे। पचजी क्यो फोस दे । बिरादरी का धन धर्म-कार्य के लिए है, यो उड़ाने के लिए नहीं है। 10, ' रेवती मा के पास लौटी, पर जो कुछ सुना था, वह उससे न कह सकी।