पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१७७

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मानसरोवर संतलाल ने यह माजरा सुना, तो दात पीसकर बोले-न जाने इस 'बिरादरी का भगवान कब अत करेंगे। रेवती-क्या बिरादरी मुझे जबरदस्ती अपने अधिकार में ले सकती है ? सतलाल-हाँ बेटी, धनिकों के हाथ में तो कानून भी है। रेवती-मैं कह दूंगी कि मैं उनके पास नहीं रहना चाहती । संतलाल -तेरे कहने से क्या होगा । तेरे भाग्य मे यही लिखा था, तो किसका बस है । मैं जाता हूँ बड़े पंच के पास । रेवती-नहीं मामाजी, तुम कहीं न जाव । जब भाग्य ही का भरोसा है तो जो कुछ भाग्य मे लिखा होगा वह होगा। रात तो रेवती ने घर मे काटी। बार-बार निद्रा-मग्न भाई को गले लगाती । यह अनाथ अकेला कैसे रहेगा, यह सोचकर उसका मन कायर हो जाता; पर झाबरमल की सूरत याद करके उसका सकल्प दृढ़ हो जाता। प्रातःकाल रेवती गगा स्नान करने गई । यह इधर कई महीनों से उसका नित्य का नियम था । आज जरा अँधेरा था ; पर यह कोई सदेह की बात न थी। संदेह तब हुआ जब श्राठ बज गये और वह लौटकर न आई । -तीसरे पहर सारी बिरादरी मे खबर फैन गई-सेठ रामनाथ की कन्या गंगा मे डूब गई । उसकी लाश पाई गई। कुबेरदास ने कहा-चलो अच्छा हुआ, बिरादरी की बदनामी तो न होगी। झानरमल ने दुखी मन से कहा-मेरे लिए अब कोई और उपाय कीजिए। उधर मोहन सिर पीट-पीटकर रो रहा था और बुढ़िया उसे गोद में लिये समझा रही थी-बेटा, उस देवी के लिए क्यों रोते हो। जिंदगी में उसके दुख ही दुख था। अब वह अपनी मा की गोद में आराम कर रही है।