पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१७९

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१८० , मानसरोवर विचार में अगर कोई काम करने लायक था, तो बस, कचहरी जाना, बहस करना, रुपये जमा करना और भोजन करके सो रहना । जैसे वेदाती को ब्रह्म के अतिरिक्त जगत् मिथ्या जान पड़ता है, वैसे ही चौबेजी को कानून के सिवा सारा संसार मिथ्या प्रतीत होता था। सब माया थी, एक कानून ही सत्य था। ( २ ) चौबेजी के मुख-चंद्र में केवल एक कला की कमी थी । उनके कोई कन्या न थी। पहलौठी कन्या के बाद फिर कन्या हुई ही नहीं, और न अब होने की आशा ही थी। स्त्री और पुरुष, दोनों उस कन्या को याद करके रोया करते थे। लड़कियां बचपन में लड़कों से ज्यादा चोचले करती हैं । उन चोंचलों के लिए दोनों प्राणी विकल रहते । मा सोचती, लड़की होती, तो उसके लिए गहने बनवाती, उसके बाल गूंथती । लड़की पैजनियाँ पहने हुनुक- ठुमुक आँगन में चलती, तो कितना आनद आता ! चौबे सोचते, कन्यादान के विना मोक्ष कैसे होगा ! कन्यादान महादान है। जिसने यह दान न दिया, उसका जन्म ही वृथा गया ! श्राखिर यह लालसा इतनी प्रबल हुई कि मगला ने अपनी छोटी बहन को बुलाकर कन्या की भांति पालने का निश्चय किया। उसके मा-बाप निर्धन थे। राजी हो गये । यह बालिका मगला की सौतेली मा की कन्या थी। बड़ी सुंदर और बड़ी चचल थी। नाम था बिन्नी। चौबेजी का घर उसके आने से खिल उठा । दो-चार ही दिनों में लड़की अपने मा बाप को भूल गई । उसकी उम्र तो केवल चार वर्ष की थी; पर उसे खेलने की अपेक्षा कुछ काम करना अच्छा लगता था। मंगला रसोई बनाने जाती तो बिन्नी भी उसके पीछे-पीछे जाती, उससे आटा गूंधने के लिए झगड़ा करती। तरकारी काटने में उसे बड़ा मज़ा आता था। जब तक वकील साहब घर पर रहते, तब तक वह उनके साथ दीवानखाने में बैठी रहती। कभी किताबे उलटती, कभी दावात-कलम से खेलती । चौबेजी मुस्कराकर कहते - बेटी, मार खायोगी ? बिन्नी कहती--तुम मार खाओगे; मैं तुम्हारे कान काट लूंगी, जूजू को बुलाकर पकड़ा दूंगी। इस पर दीवानखाने में खूब कहकहे उड़ते। वकील