इतनी महॅगी पड़ेगी, तो उधर जाने का नाम भी न लेता। उसे बचाने के
लिए मुझसे जो कुछ हो सकता था, वह मैने सब किया, किन्तु बुख़ार टाइ-
फायड था, उसकी जान लेकर ही उतरा। उसके जीवन के स्वप्न मेरे लिए
किसी ऋषि के आशीर्वाद बनकर मुझे प्रोत्साहित करने लगे और यह उसी का
शुभ फल है कि आज आप मुझे इस दशा मे देख रहे हैं। मोहन की बाल
अभिलाषाओं को प्रत्यक्ष रूप में लाकर यह मुझे सतोष होता है कि शायद
उसकी पवित्र आत्मा मुझे देखकर प्रसन्न होती हो। यही प्रेरणा थी कि जिसने
कठिन से कठिन परीक्षाओ ने भी मेरा बेड़ा पार लगाया; नहीं तो मैं आज
भी वही मंद-बुद्धि सूर्यप्रकाश हूॅ, जिसकी, सूरत से आप चिढते थे।'
उस दिन से मैं कई बार सूर्यप्रकाश से मिल चुका हूॅ। वह जब इस तरफ आ जाता है, तो बिना मुझसे मिले नहीं जाता है। मोहन को अब भी वह अपना इष्टदेव समझता है। मानव-प्रकृति का यह एक ऐसा रहस्य है, जिसे मैं आज तक नहीं समझ सका।
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