पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१८१

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१८२ मानसरोवर वह चौवेजी को अपना बाप और मगला को अपनी मा समझने लगी। जिन्होंने उसे जन्म दिया था, वे अब गैर हो गये । n n कई साल गुज़र गये। वकील साहब के बेटों के विवाह हुए । उनमें से दो अपने बाल-बच्चों को लेकर अन्य जिलों में वकालत करने चले गये । दो कालेज में पढ़ते थे । बिन्नी भी कली से फूल हुई । ऐसे रूप-गुण-शीलवाली बालिका बिरादरी मे और न थी-पढ़ने-लिखने मे चतुर, घर के काम-धंधो में कुशल, बूटे-कसीदे और सीने-पोरोने में दक्ष, पाककला मे निपुण, मधुर- भाषिणी, लजाशीला, अनुपम रूप की राशि । अँधेरे घर में उसके सौदर्य की दिव्य ज्योति से उजाला होता था। उषा की लालिमा में, ज्योत्स्ना की मनोहर छटा मे, खिले हुए गुलाब के ऊपर सूर्य की किरणों से चमकते हुए तुधार-विदु में भी वह प्राण-प्रद सुषमा और वह शोभा न थी, श्वेत हेम. मुकुटधारी पर्वत में भी वह शीतलता न थी, जो बिन्नी अर्थात् विंध्येश्वरी के विशाल नेत्रो में थी। चौवेजी ने बिन्नी के लिए सुयोग्य वर खोजना शुरू किया। लड़कों की शादियो में दिल का अरमान निकाल चुके थे । अब कन्या के विवाह में हौसले पूरे करना चाहते थे। धन लुटाकर कीर्ति पा चुके थे, अब दान दहेज में नाम कमाने की लालसा थी। बेटे का विवाह कर लेना आसान है, पर न्या के विवाह में प्राबरू निबाह ले जाना कठिन है, नौका पर सभी यात्रा करते हैं ; जो तैरकर नदी पार करे, वही प्रशसा का अधिकारी है । धन की कमी न थी। अच्छा घर और सुयोग्य वर मिल गया। जन्मपत्र मिल गये, बनावत बन गया । फलदान और तिलक की रस्मे भी अदा कर दी गई। पर हाय रे दुर्दैव ! कहाँ तो विवाह की तैयारी हो रही थी, द्वार पर दरजी, सुनार, हलवाई, सब अपना-अपना काम कर रहे थे, कहाँ निर्दय विधाता ने और ही लीला रच दी! विवाह के एक सप्ताह पहले मगला अनायास बीमार पड़ी, तीन ही दिन में अपने सारे अरमान लिये हुए परलोक सिधार गई। 7