पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१८७

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मानसरोवर यडित-करना भी चाहूँ तो बदनामी के डर से नहीं कर सकता । फिर मुझे पूछता ही कौन है ? सास-पूछने को हज़ारों हैं । दूर क्यों जाओ, अपने घर ही में लड़की बैठी हुई है। सुना है, तुमने मंगला के सब गहने बिन्नी को दे दिये हैं। वहीं और विवाह हुआ, तो ये कई हज़ार की चीज़े तुम्हारे हाथों से निकल जायगी। तुमसे अच्छा वर मैं कहाँ पाऊँगी । तुम उसे अंगीकार कर लो, तो तर जाऊँ। अधा क्या मांगे, दो आँखे । चौवेजी ने मानों विवश होकर सास की प्रार्थना स्वीकार कर ली। ( ) बिन्नी अपने गांव के कच्चे मकान मे अपनी मा के पास बैठी हुई है। अवकी चौबेजी ने उसकी सेवा के लिए एक लौड़ी भी साथ कर दी है। निध्येश्वरी के दोनों छोटे भाई विस्मित हो-होकर उसके आभूषणों को देख रहे हैं । गांव की और कई स्त्रियाँ उसे देखने आई हुई हैं, और उसके रूप- जावण्य का विकास देखकर चकित हो रही हैं। यह वही बिन्नी है, जो यहाँ मटी फरिया पहिने खेला करती थी ! रग रूप कैसा निखर आया है ! सुख की देह है न! जब भीड़ कम हुई, एकात हुश्रा, तो माता ने पूछा-तेरे भैयाजी तो अच्छी तरह हैं न बेटी ? यहाँ आये थे, तो बहुत दुखी थे। मंगला का शोक जन्हें खाये जाता है । ससार में ऐसे मर्द भी होते हैं, जो स्त्री के लिए प्राण दे देते हैं । नहीं तो यहाँ स्त्री मरी, और चट दूसरा ब्याह रचाया गया । अपनों मनाते रहते हैं कि यह मरे, तो नई-नवेली बहू घर लाये । विंध्ये०-उन्हें याद करके रोया करते हैं । चली आई हूँ, न-जाने कैसे होंगे ! माता-मुझे तो डर लगता है कि तेरा ब्याह हो जाने पर कहीं घबराकर लाधू फकीर न हो जाये। विध्ये -मुझे भी तो यही डर लगता है। इसी से तो मैंने कह दिया कि अभी जल्दी क्या है।