पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२०६

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सभ्यता का रहस्य २०७ और रुपये लेकर संदूक में दाखिल कर लिये ! अगर किसी तरह बात खुन जाय तो कहीं का न रहूँ। स्त्री-तो भई सोच लो। अगर कुछ गड़बड़ हो तो मैं जाकर रुपये लौटा हूँ। राय साहब-फिर वही हिमाकत ! अरे, अब तो जो कुछ होना था, हो चुका । ईश्वर पर भरोसा करके ज़मानत लेनी पड़ेगी। लेकिन तुम्हारी हिमाकत में शक नहीं । जानती हो, यह साप के मुँह में उँगली डालना है , यह भी जानती हो कि मुझे ऐसी बातों से कितनी नफरत है, फिर भी वेसन हो जाती हो । अबकी बार तुम्हारी हिमाकत से मेरा वन टूट रहा है। मैंने दिल से ठान लिया था कि अब इस मामले मे हाथ न डालू गा, लेकिन तुम्हारी हिमाकत के मारे जब मेरी कुछ चलने पाये ! स्त्री-मै जाकर लौटाये देती हूँ। राय साहब-और मैं जाकर ज़हर खाये लेता हूँ। इधर तो स्त्री-पुरुष मे यह अभिनय हो रहा था, उधर दमडी उसी वक्त अपने गांव के मुखिया के खेत मे जुार काट रहा था। आज वह रात-भर की छुट्टो लेकर घर गया था। बैलो के लिए चारे का एक तिनका भी नहीं है । अभी वेतन मिलने में कई दिन की देर थी, मोन ले न सकता था। घरवालों ने दिन को कुछ घास छीलकर खिलाई तो थी, लेकिन ऊँट के मुंह में जीरा , उतनी घास से क्या हो सकता था। दोनों बैल भूखे खड़े थे दमडी को देखते ही दोनों पूँछे खडी करके हुँकरने लगे। जब वह पास गया, तो दोनों उसकी हथेलियां चाटने लगे। वेचारा दमडी मन मसोस कर रह गया। सोचा, इस वक्त तो कुछ हो नहीं सकता, सवेरे किसी से कुछ उधार लेकर चारा लाऊँगा। लेकिन जब ११ बजे रात को उसकी आँख खुनी, तो देखा, दोनों बैल अभी तक नौद पर खड़े हैं । चाँदनी रात थी, दमडी को जान पडा कि द'नों उसकी ओर अपेक्षा और याचना की दृष्टि से देख रहे हैं। उनकी क्षुधा वेदना देखकर उसकी आँखे सजल हो पाई । किसान को अपने बैल अपने लड़कों की तरह प्यारे होते हैं । वह उन्हें पशु नहीं, अपना मित्र और सहायक