पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२०७

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'२०८ . कुछ बेचने के मानसरोवर समझता है । बैलों को भूखे खड़े देख नींद आँखों से भाग गई । कुछ सोचता हुआ उठा । हँसिया निकाली, और चारे की फिक्र में चला। गांव के बाहर बाजरे और जुबार के खेत खड़े थे । दमड़ी के हाथ कांपने लगे । लेकिन बैलों की याद ने उसे उत्तेजित कर दिया। चाहता, तो कई बोझ काट सकता था; लेकिन वह चोरी करते हुए भी चोर न था। उसने केवल उतना चारा काटा, जितना बैलो को रातभर के लिए काफी हो । सोचा, अगर किसी ने देख भी लिया, तो उससे कह दूगा, बैल भूखे थे, इसलिए काट लिया। उसे विश्वास था कि थोड़े से चारे के लिए कोई मुझे पकड़ नहीं सकता। मैं "लिए तो काट नहीं रहा हूँ, फिर ऐसा निर्दयी कौन है, जो मुझे पकड़ ले। बहुत करेगा अपने दाम ले लेगा ! उसने बहुत सोचा। चारे का थोड़ा होना ही उसे चोरी के अपराध से बचाने को काफी था। चोर उतना काटता, जितना उससे उठ सकता, उसे किसी के फायदे नुकसान से क्या मतलब ? गांव के लोग दमड़ी को चारा लिये जाते देखकर बिगड़ते ज़रूर, पर कोई चोरी के इलज़ाम मे न फंसाता, लेकिन सयोग से हल्के के थाने का सिपाही उधर जा निकला। वह पड़ोस के एक बनिये के यहाँ जुना होने की खबर पाकर कुछ ऐठने की टोह में पाया था। दमड़ी को चारा सिर पर उठाते देखा, तो सदेह हुआ। इतनी रात गये कौन चारा काटता है ? हो न हो, कोई चोरी से काट रहा है। डॉटकर बोला-कौन चारा लिये जाता है, खडा रह! दमड़ी ने चौककर पीछे देखा, तो पुलिस का सिपाही ! हाथ पांव फूल गये, कापते हुए बोला-हजूर, थोड़ा ही सा काटा है, देख लीजिए । सिपाही-थोड़ा काटा हो या बहुत, है तो चोरी । खेत किसका है ? दमड़ी-बलदेव महतों का। सिपाही ने समझा था, शिकार फंसा, इससे कुछ ऐठूगा; लेकिन वहाँ क्या रखा था। पकडकर गाँव मे लाया, और जब वहाँ भी कुछ हत्थे चढ़ता न दिखाई दिया तो थाने ले गया। थानेदार ने चालान कर दिया । मुकदमा राय साहब ही के इजलास में पेश किया। २य साहब ने दमडी को फंसे हुए देखा तो हमदर्दी के बदले कठोरता v