पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२१८

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0 दो सखियाँ २१९ अवश्य बुलाना, इसलिए नहीं कि वह तुमसे बात-बात परं टके निकलवाये, बल्कि इसलिए कि वह देखता रहे कि सब कुछ शास्त्र विधि से हो रहा है, या नहीं। अच्छा, अब मुझसे पूछो कि इतने दिनो क्यों चुप्पी साधे बैठी रही। मेरे ही ख़ानदान में, इन ढाई महीनों में, पांच शादियां हुई। बारातों का तांता लगा रहा। ऐसा शायद ही कोई दिन गया हो कि १०० मेहमानों से कम रहे हो, और जब बारात आ जाती थी, तब तो उनकी सख्या पांच पांच सौ तक पहुंच जाती थी। ये पांचो लड़कियां मुझसे छोटी हैं; और मेरा बस चलता तो अभी तीन चार साल तक न बोलती, लेकिन मेरी सुनता कौन है और विचार करने पर मुझे भी ऐसा मालूम होता है कि माता-पिता का लडकियों के विवाह के लिए जल्दी करना कुछ अनुचित नहीं है। जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं। अगर माता-पिता अकाल ही मर जाय, तो लड़की का विवाह कौन करे । भाइयो का क्या भरोसा । अगर पिता ने काफी दौलत छोड़ी है, तो कोई बात नहीं ; लेकिन जैसा साधारणतः होता है, पिता ऋण का भार छोड़ गये, तो बहन भाइयों पर भार हो जाती है। यह भी अन्य कितने ही हिंदू-रस्मों की भांति आर्थिक समस्या है, और जब तक हमारी आर्थिक दशा न सुधरेगी, यह रस्म भी न मिटेगी। अव मेरे बलिदान की बारी है। आज के पंद्रहवें दिन यह घर मेरे लिए विदेश हो जायगा । दो-चार महीने के लिए पाऊँगी, तो मेहमान की तरह। मेरे विनोद बनारसी है, अभी कानून पढ रहे हैं। उनके पिता नामी वकील हैं । सुनती हूँ कई गाँव है, कई मकान हैं, अच्छी मर्यादा है। मैंने अभी तक वर को नहीं देखा। पिताजी ने मुझसे पुछावाया था कि इच्छा हो, तो वर को बुला दूं। पर मैंने कह दिया, कोई ज़रूरत नहीं। कौन घर में बहू यने । है तकदीर ही का सौदा । न पिताजी ही किसी के मन मे पैठ सकते हैं, न मैं ही। अगर दो-एक बार देख ही लेती, नहीं मुलाकात ही कर लेती, तो क्या हम दोनों एक दूसरे को परख लेवे। यह किसी तरह संभव नहीं। ज्यादा-से-ज्यादा हम एक दूसरे का रग-रूप देख सकते हैं । इस विषय में मुझे विश्वास है कि पिताजी मुझसे कम सयत नहीं हैं। मेरे दोनों बड़े बहनोई