पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२२१

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२२२ मानसरोवर के लिए स्टेशन तक पाई और विदा होते समय बहुत रोई। उसे साथ ले चलना चाहती थी, पर न जाने क्यों वह राज़ी न हुई। मंसूरी रमणीक है, इसमें सदेह नहीं। श्यामवर्ण मेघमालाएँ पहाड़ियों पर विश्राम कर रही हैं, शीतल पवन श्राशा-तरंगों की भांति चित्त का रंजन कर रहा है; पर मुझे ऐसा विश्वास है कि विनोद के साथ मैं किसी निर्जन वन में भी इतने ही सुख से रहती। उन्हे पाकर अब मुझे किसी वस्तु की लालसा नहीं। बहन, तुम इस आनदमय जीवन की शायद कल्पना भी न कर सकोगी। सुबह हुई, नाश्ता आया, हम दोनों ने नाश्ता किया, डाँड़ी तैयार है, नौ बजते-बजते सैर करने निकल गये किसी जल-प्रपात के किनारे जा बैठे। वहां जल-प्रवाह का मधुर संगीत सुन रहे हैं या किसी शिला खंड पर बैठे मेघों की व्योम-क्रीड़ा देख रहे हैं । ११ बजते-बजते लौटे। भोजन तैयार है। भोजन किया। मैं प्यानों पर जा बैठी। विनोद को संगीत से प्रेम है। खुद बहुत अच्छा गाते हैं, और मैं गाने लगती हूँ, तब तो वह झूमने ही लगते हैं। तीसरे पहर हम एक घटे के लिए विश्राम करके खेलने या कोई खेल देखने चले जाते हैं। रात को भोजन करने के बाद थियेटर देखते हैं और वहाँ से लौटकर शयन करते हैं। न सास की धुडकिया है, न ननदो की कानाफूसी, न जेठानियों के ताने । पर इस सुख मे भी मुझे कभी कभी एक शंका-सी होती है-फूल में कोई काटा तो नहीं छिपा हुआ है, प्रकाश के पीछे कहीं अधकार तो नहीं है ! मेरी समझ में नहीं आता, ऐसी शका क्यों होती है । अरे, यह लो पांच बज गये, विनोद तैयार हैं, अाज टेनिस का मैच देखने जाना है। मैं भी जल्दी से तैयार हो जाऊँ । शेष बाते फिर लिखू गी। हो, एक बात तो भूली ही जा रही थी। अपने विवाह का समाचार लिखना । पतिदेव कैसे हैं १ रग-रूप कैसा है ? ससुराल गई, या अभी मैके ही मैं हो ! ससुराल गई, तो वहा के अनुभव अवश्य लिखना। तुम्हारी खूब नुमाइश हुई होगी। घर, कुटु ब और मुहल्ले की महिलाओं ने यूंघट उठा- उठाकर खूब मुंह देखा होगा, खूब परीक्षा हुई होगी। ये सभी बाते विस्तार से लिखना । देखे कब फिर मुलाकात होती, है । तुम्हारी पद्मा