पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२५३

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२५४ X X मानसरोवर ही रहेगा। समान रूप से वह भीतर और बाहर दोनो जगह नहीं रह सकता। स्वांग वेश्याओं के लिए है, कुलवती तो प्रम को हृदय ही में संचित रखती हैं। 'बहन, पत्र बहुत लंबा हो गया, तुम पढ़ते-पढ़ते ऊब गई होगी। मैं भी लिखते-लिखते थक गई। अव शेष बाते कल लिखू गी। परसो यह पत्र तुम्हारे पास पहुँचेगा। x बहन, क्षमा करना, कल पत्र लिखने का अवसर नहीं मिला। रात एक ऐसी बात हो गई, जि चित्त अाशांत हो उठा। बड़ी मुश्किलों से यह थोड़ा-सा समय निकाल सकी हूँ। मैंने अभी तक आनंद से घर के किसी प्राणी की शिकायत नहीं की थी। अगर सासजी ने कोई बात कह दी या ननदीजी ने कोई ताना दे दिया, तो इसे उनके कानों तक क्यों पहुँचाऊँ। इसके सिवा कि गृह-कलह उत्पन्न हो, इससे और क्या हाथ आयेगा। इन्हीं जरा-जरा सी बातो को पेट में न डालने में घर बिगड़ते हैं । आपस मे वैमनस्य बढ़ता है। मगर संयोग की बात, कल अनायास ही मेरे मुँह से एक बात निकल गई जिसके लिए मैं अब भी अपने को कोस रही हूँ, और ईश्वर से मनाती हूँ कि वह आगे न बढ़े। बात यह हुई कि कल आनद बाबू बहुत देर करके मेरे पास आये। मैं उनके इंतज़ार में बैठी एक पुस्तक पढ़ रही थी । सहसा सासजी ने आकर पूछा-क्या अभी तक बिजली जल रही है। क्या वह रात भर न आये, तो तुम रात भर बिजली जलाती रहोगी? मैंने उसी वक्त बत्ती ठंडी कर दी। आनद बाबू थोड़ी देर मे श्राये, तो कमरा अँधेरा पड़ा था, न जाने उस वक्त मेरी मति कितनी मंद हो गई थी। अगर मैंने उनकी आहट पाते ही बत्ती जला दी होती, तो कुछ न होता। मगर मैं अँधेरे में पड़ी रही। उन्होंने पूछा-क्या सो गई ? यह अंधेग क्यों पड़ा हुआ है। हाय ! इस वक्त भी यदि मैंने कह दिया होता कि मैंने अभी बत्ती गुल कर दी है, तो बात बन जाती। मगर मेरे मुँह से निकला 'सासजी का हुक्म हुआ कि बत्ती गुल कर दो, गुल कर दी। तुम रात भर न आओ, तो क्या रात भर बत्ती जलती रहे। .