पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२५४

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२५५ दो सखियाँ 'तो अब तो जला दो। मैं रोशनी के सामने से आ रहा हूँ। मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं। 'मैंने अब बटन को हाथ से छूने की कसम खा ली। जब ज़रूरत पड़ेगी तो मोम की बत्ती जला लिया करूँगी । कौन मुफ्त मे धुडकियां सहे ।' आनद ने बिजली का बटन दबाते हुए कहा-'और मैंने कसम खा ली कि रात भर बत्ती जलेगी, चाहे किसी को बुरा लगे या भला । सब कुछ देखता हूँ , अधा नहीं हूँ। दूसरी बहू पाकर इतनी सेवा करेगी तो देखू गा। तुम हो नसीब की खोटी कि ऐसे प्राणियों के पाले पड़ी। किसी दूसरी सास की तुम इतनी ख़िदमत करतीं, तो वह तुम्हें पान की तरह फेरती, तुम्हें हाथों पर लिये रहती, मगर यहाँ चाहे कोई प्राण ही दे दे, किसी के मुंह से सीधी वात न निकलेगी। मुझे अपनी भूल साफ़ मालूम हो गई। उनका क्रोध शान करने के इरादे से बोली-ग़लती तो मेरी ही थी कि व्यर्थ श्राधी रात तक बत्ती जलाये बैठी रही। अम्माजी ने गुल करने को कहा, तो क्या बुरा कहा । मुझे सम- झाना, अच्छी सीख देना उनका धर्म है । मेरा धर्म भी यही है कि यथाशक्ति उनकी सेवा करूँ और उनकी शिक्षा को गिरह बांधू । श्रानद एक क्षण द्वार की ओर ताकते रहे । फिर बोले-मुझे मालूम हो रहा है कि इस घर में मेरा अब गुजर न होगा। तुम नहीं कहतीं, मगर मैं सब कुछ सुनता रहता हूँ | सब समझता हूँ। तुम्हें मेरे पापों का प्रायश्चित्त करना पड़ रहा है । मैं कल अम्माजी से साफ-साफ कह दूंगा-'अगर अापका यही व्यवहार है, तो आप अपना घर लीजिए, मैं अपने लिए कोई दूसरी राह निकाल लूंगा। मैंने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा-नहीं, नहीं। कहीं ऐसा गजव भी न करना । मेरे मुह में आग लगे, कहाँ से कहाँ बत्ती का जिक्र कर बैठी । मैं तुम्हारे चरण छूकर कहती हूँ , मुझे न सासजी से कोई शिकायत है, न ननदीजी से, दोनों मुझसे बड़ी हैं, मेरी माता के तुल्य है। अगर एक बात कड़ी भी कह दें, तो मुझे सब करना चाहिए। तुम उनसे कुछ न कहना, नहीं तो मुझे बड़ा दुःख होगा।