पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२६

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२५ . सद्गति बाना पहनाकर बाहर निकले। दुखी अभी तक वहीं पडा हुआ था । जोर से पुफारा-अरे क्या पड़े ही रहोगे दुखी, चलो तुम्हारे ही घर चल रहा हूँ। सब सामान ठीक-ठीक है न ! दुखी फिर भी न उठा। अब पडितजी को कुछ शंका हुई । पास जाकर देखा, तो दुखी अकड़ा पड़ा हुआ था। वदहवास होकर भागे और पडिताइन से बोले--दुखिया तो जैसे मर गया। पडिताइन हकबकाकर बोलीं-वह तो अभी लकड़ी चीर रहा था न ! पाडित-हाँ लकड़ी चीरते-चीरते मर गया । अब क्या होगा ? पडिताइन ने शांत होकर कहा-होगा क्या, चमरौने में कहला भेजो, मुर्दा उठा ले जायें। एक क्षण मे गाँव भर मे ख़बर हो गई। पूरे में बाम्हनो की ही बस्ती थी। केवल एक घर गोंड़ का था। लोगों ने उधर का रास्ता छोड़ दिया। कुएँ का रास्ता उधर ही से था, पानी कैसे भरा जाय । चमार की लाश के पास से होकर पानी भरने कौन जाय । एक दुढिया ने पडितजी से कहा- सुर्दा फेकवाते क्यों नहीं । कोई गांव में पानी पीयेगा या नहीं। इधर गोंड ने चमरौने में जाकर सबमे कह दिया-खबरदार, मुर्दा उठाने मत जाना। अभी पुलिस की तहकीकात होगी । दिल्लगी है कि एक गरीब की जान ले ली। पडित होंगे, तो अपने घरके होगे। लाश उठानोगे तो तुम भी पकड़ जाअोगे। इसके बाद ही पडितजी पहुँचे , पर चमराने का कोई आदमी लाश उठा लाने को तैयार न हुआ। हाँ दुखी की स्त्री और कन्या दोनों हाय-हाय करती वहाँ चलीं और पडितजी के द्वार पर आकर सिर पीट पीटकर रोने लगीं। उसके साथ दस-पांच और चमारिनें थीं। कोई रोती थी, कोई समझाती थी, पर चमार एक भी न था । पाडितजी ने चमारों को बहुत धमकाया, झाया, मिन्नत की; पर चमारो के दिल पर पुलिस का रोब छाया हुआ था, एक भी न मिनका । आखिर निराश होकर लोट आये। ( ४ ) आधी रात तक रोना-पीटना जारी रहा। देवताओं का सोना मुश्किल -अब सम-