पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२८६

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मॉगे की घड़ी २८७ आये, तो चिमनियां सब टूटी हुई । पूछा, यह आपने क्या किया, तो बोले- जैसी गई थी, वैसी आई । यह तो आपने न कहा था कि इनके बदले नई लालटेनें लूंगा। वाह साहब वाई यह अच्छा रोजगार निकाला । बताइए क्या करता । एक दूसरे महाशय कालोन ले गये। बदले में एक फटी हुई दरी ले पाये । पूछा, तो बोले- 'साहब, श्रापको तो यह दरी मिल भी गई, मैं किसके सामने जाकर रोऊँ, मेरी पाच कालीनों का पता नहीं, कोई साहब सब समेट ले गये ।। बताइए, उनसे क्या कहता! तब से मैंने कान पकड़े कि अब किसी के साथ यह व्यवहार ही न करूँगा । सारा शहर मुझे बेमुरौव्वत, मक्खीचूस और जाने क्या-क्या कहता है, पर मैं परवा नहीं करता। लेकिन श्राप बाहर जा रहे हैं और बहुत-से श्रादमियो से आपकी मुलाकात होगी, सभव है, कोई इस घडी का गाहक निकल जाय, इसलिए आपके साथ इतनी सख्ती न करूँगा। हो, इतना अवश्य कहूँगा कि मैं इसे निकालना चाहता हूँ और आपसे मुझे सहायता मिलने की पूरी उम्मेद है । अगर कोई दाम लगाये, तो मुझसे आकर कहिएगा। मैं यहाँ से कलाई पर घडी बांधकर चला, तो ज़मीन पर पाव न पडते थे। घडी मिलने की इतनी खुशी न थी, जितनी एक मुड्ढ पर विजय पाने की। कैसा फोसा है बचा को । वह समझते थे कि मैं ही बड़ा सयाना हूँ, यह नहीं जानते थे कि यहां उनके भी गुरूघटाल हैं । ( २ ) उसी दिन शाम को मैं ससुराल जा पहुँचा। अब यह गुत्थी खुली कि लोग क्यों ससुराल जाते वक्त इतना ठाट करते हैं । सारे घर में हलचल पड़ गई। मुझपर किसी की निगाह न थी। सभी मेरा साज-सामान देख रहे थे । कहार पानी लेकर दौड़ा, एक साला मिठाई की तश्तरी लाया, दूसरा पान की । नाइन झांककर देख गई और ससुरजी की आँखो में तो ऐसा गर्व झन; रहा था, मानों ससार को उनके निर्वाचन-कौशल पर सिर झुकाना चाहिए। महीने का नौकर इस वक्त ऐसी शान से बैठा हुआ था, जैसा बड़े बाबू दफ्तर में बैठते हैं, कहार पखा झल रहा था, नाहन पाव धो रही थी, ३१)