पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३०

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तगादा २९ सेठजी को हाथ मिलाते ही मालूम हो गया, पक्का फिकैत है, अखाड़े- बाज, इससे पेश पाना मुश्किल है; पर अब तो कुश्ती बद गई थी, अखाड़े में उतर पड़े थे। बोले-तो यह कहो कि बादशाही घराने के हो। यह सूरत ही गवाही दे रही है । दिनों का फेर है भाई, सब दिन बराबर नहीं जाते । हमारे यहाँ लक्ष्मी को चञ्चला कहते हैं, बराबर चलतो रहती है, आज मेरे घर कल तुम्हारे घर । तुम्हारे दादा ने रुपये तो खूब छोड़े होंगे ? इक्केवाला-अरे सेठ, उस दौलत का कोई हिसाब था । न जाने कितने तैखाने भरे हुए थे । बोरो में तो सोने-चांदी के डले रखे हुए थे। जवाहरात टोकरियों मे भरे पडे थे। एक-एक पत्थर पचास-पचास लाख का। चमक-दमक ऐसी थी, कि चिराग मात । मगर तक़दीर भी तो कोई चीज़ है। इधर दादा का चालीसा हुआ, उधर नवाबी बुर्द हुई । सारा खज़ाना लुट गया । छकड़ों पर लाद लादकर लोग जवाहरात ले गये। फिर भी घर में इतना बच रहा था कि अब्बाजान ने जिन्दगी भर ऐश किया-ऐसा ऐश किया, कि क्या कोई भकुवा करेगा । सोलह कहारो के सुखपाल पर निकलते थे। आगे पीछे चोबेदार दौड़ते चलते थे। फिर भी मेरे गुजर भर को उन्होंने बहुत छोडा । अगर सिाब किताब से रहता, तो अाज भला आदमी होता, लेकिन रईस का बेटा रईस ही तो होगा । एक बोतल चढाकर बिस्तर से उठता था। रात-रात भर मुजरे होते रहते थे। क्या जानता था, एक दिन यह ठोकरे खानी पड़ेगी। सेठ-अल्लामियां का सुकुर करो भाई कि ईमानदारी से अपने बाल- बच्चों की परिवरिश तो करते हो । नहीं तो हमारे तुम्हारे कितने ही भाई रात. दिन कुकर्म करते रहते हैं, फिर भी दाने-दाने को मुहताज रहते हैं। ईमान की सलामती चाहिए, नहीं, दिन तो सभी के कट जाते हैं, दूध कटे तो क्या, सूखे चने चबाकर कटे तो क्या । बड़ी बात तो ईमान है । मुझे तो तुम्हारी सूरत देखते ही मालूम हो गया था, कि नीयत के साफ सच्चे श्रादमी हो । वेईमानों की तो सरत ही से फटकार बरसती है। इक्केवाला-सेठजी, आपने ठीक कहा कि ईमान सलामत रहे, तो सब कुछ है । आप लोगों से चार पैसे मिल जाते हैं, वही बाल बच्चों को खिला- रोटी खाकर .