पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३२

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तगादा ३१ n मुरौअत का सबक तो उस्ताद ने पढ़ाया ही नहीं । एक ही चहल हूँ । मजाल क्या कि कोई एक पैसा दबा ले। घरवाली तक को तो मैं एक पैसा देता नहीं, दूसरों की बात ही क्या है । और इक्केवाले अपने महाजन की खुशा- मद करते हैं। उसके दरवाजे पर खड़े रहते हैं। यहाँ महाजनों को भी धता बताता हूँ। सब मेरे नाम को रोते हैं । रुपये लिये और साफ डकार गया । देखे अब कैसे वसूल करते हो बच्चा, नालिश करो, घर में क्या धरा है, जो ले लोगे। सेठजी को मानो जूड़ी चढ़ आई । समझ गये, यह शैतान बिना पैसे लिये न मानेगा । जानते कि यह विपत्ति गले पडेगी, तो भूलकर भी इक्के पर पाँव न रखते । इतनी दूर पैदल चलने मे कौन पैर टूट जाते थे । अगर इस तरह रोज़ पैसे देने पडे, तो फिर लेन-देन कर चुका । सेठजी भक्त जीव थे । शिवजी को जल चढाने में, जब से होश सँभाला, एक नागा भी न किया। क्या भक्तवत्सल शकर भगवान, इस अवसर पर मेरी सहायता न करेगे। इष्टदेव का सुमिरन करके बोले-~-खो साहब, और किसी से चाहे न दबो, पर पुलिस से तो दबना ही पड़ता होगा। वह तो किसी के सगे नहीं होते। इक्केवाले ने कहकहा मारा--कभी नहीं, उससे उल्टे और कुछ न कुछ वसूल करता हूँ। जहाँ कोई शिकार मिला, झट सस्ते भाड़े बैठाता हूँ और थाने पर पहुंचा देता हूँ । केराया भी मिल जाता है और इनाम भी। क्या मजाल कि कोई बोल सके । लहसन नहीं लिया आज तक लहसन ! मजे मे सदर में इक्का दौडाता फिरता हूँ। कोई साला → नही कर सकता। मेले ठेला में अपनी खूब बन पाती है। अच्छे-अच्छे माल चुन-चुनकर कोतवाली पहुँचाता हूँ । वहाँ कौन किसी की दाल गलती है। जिसे चाहें रोक ले, एक दिन; दो दिन, तीन दिन । बीस बहाने हैं । कह दिया, शक था कि यह औरत को भगाये लिये जाता था, या औरत को कह दिया कि अपनी ससुराल से रूठकर भागी जाती थी। फिर कौन बोल सकता है । साहब भी छोडना चाहें, तो नहीं छोड़ सकते । मुझे सीधा न समझिएगा । एक ही हरामी हूँ। सवारियों से पहले केराया तय नहीं करता, ठिकाने पहुंचकर एक के दो लेता हूँ। जरा