पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३४

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तगादा ३५ पर-उधर ताककर कहा-यहाँ तो कोई तम्बोली नहीं है। 'की अोर कटाक्षपूर्ण नेत्रों से देखकर बोली-क्या मेरे लगाये पानों से भी खराब होंगे ? इजित होकर कहा-नहीं-नहीं, यह बात नहीं। तुम मुसलमान

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विनोदमय आग्रह से कहा-खुदा की कसम, इसी बात पर मैं कर छोडूगी! उसने पानदान से एक बीड़ा निकाला और सेठजी की तरफ़ ने एक मिनिट तक तो, हाँ ! हाँ । किया, फिर दोनों हाथ गने की चेष्टा की, फिर ज़ोर से दोनों ओठ बंद कर लिये ; किसी तरह न मानी, तो सेठजी अपना धर्म लेकर वे-तहाशा ही चारपाई पर रह गया। बीस क़दम पर जाकर आप रुक कर बोले-देखो, इस तरह किसी का धर्म नहीं लिया जाता। रा छा पानी भी पी ले, तो धर्म भ्रष्ट हो जाय ।