पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/४२

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दो कत्रे हैं। मुझे तो उनकी सूरत से चिढ हो गई है, अगर तुम क्यों नहीं जाते ? कुछ दिल ही बहल जायगा। रामेंद्र-दिल नहीं पत्थर बहलेगा। जब अदर आग लगी हुई हो, तो : बाहर शाति कहाँ ? सुलोचना चौक पड़ी। अाज पहिली बार उसने रामेद्र के मुँह से ऐसी नात सुनी । वह अपने ही को बहिष्कृत समझती थी। अपना अनादर जो कुछ था, उसका था । रामेंद्र के लिए तो अब भी सब दरवाजे खुले हुए थे। वह जहाँ चाहे जा सकते हैं, जिनसे चाहे मिल सकते हैं, उनके लिए कौन-सी रुकावट है , लेकिन नहीं, अगर उन्होंने किसी कुलीन स्त्री से विवाह किया होता, तो उनकी यह दशा क्यों होती ? प्रतिष्ठित घरानों की औरते पाती, आपस मे मैत्री बढती, जीवन सुख से कटता रेशम मे रेशम का पैबद लग जाता । अब तो उसमे टाट का पैबद लग गया। मैंने आकर सारे तालाब को गदा कर दिया। उसके मुख पर उदासी छा गई । रामेंद्र को भी तुरत मालूम हो गया कि उनकी जबान से एक ऐसी बात निकल गई, जिसके दो अर्थ हो सकते हैं। उन्होने फौरन बात बनाई, क्या तुम समझती हो कि हम और तुम अलग-अलग है। हमारा और तुम्हारा जीवन एक है । जहाँ तुम्हारा अादर नहीं, वहाँ मै कैसे जा सकता हूँ ! फिर मुझे भी समाज के इन रेंगे सियारों से घृणा हो रही है। मैं इन सबों के कच्चे चिट्ठे जानता हूँ । पद या उपाधि या धन से किसी की आत्मा शुद्ध नहीं हो जाती। जो ये लोग करते हैं, वह अगर कोई चे दरजे का श्रादमो करता, उसे कहीं मुँह दिखाने की हिम्मत न होती; मगर यह लोग अपनी सारी बुराइयाँ उदारतावाद के पर्दै में छिपाते हैं । इन लोगों से दूर रहना ही अच्छा। सुलोचना का चित्त शात हो गया । ( ४ ) दूसरे साल सुलोचना की गोद में एक चाँद-सी बालिका का उदय हुआ। उसका नाम रक्खा गया शोभा। कुँवर साहब का स्वास्थ्य इन दिनों कुछ अच्छा न था । मसूरी गये हुए थे। यह खबर पाते ही रामेंद्र को तार दिया कि जच्चा और बच्चा को लेकर यहीं पा जायो।