पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/५३

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... - ५२ मानसरोवर से मुँह फेर लिया। यही उस अपमान की मूर्तिमान वेदना है, जो इतने दिनों मुझे भोगनी पड़ी । मैं इसके लिए क्यों अपने प्राण सकट में डालू । अगर उसके निर्दयी पिता को उसका प्रम है, तो उसको पाले। और एक दिन भी उसी तरह रोवे, जिस तरह आज मेरे पिता को रोना पड़ रहा है। ईश्वर अबकी अगर जन्म देना, तो किसी भले आदमी के घर जन्म देना.. जहाँ जुहरा का मज़ार था उसी के बग़ल मे एक दूसरा मज़ार बना हुआ है । जुहरा के मज़ार पर घास जम आई है, जगह-जगह से चूना गिर गया है ; लेकिन दूसरा मज़ार बहुत साफ-सुथरा और सजा हुआ है। उसके चारों तरफ गमले रखे हुए हैं और मज़ार तक जाने के लिए गुलाब के वेलो की रविशें बनी हुई हैं। शाम हो गई है । सूर्य की क्षीण, उदास, पीली किरणे मानो उस मज़ार पर आंसू बहा रही हैं। एक आदमी एक तीन-चार साल की बालिका को गोद में लिये हुए आया और उस मज़ार को अपने रूमाल से साफ़ करने लगा। रविंशो मे जो पत्तियां पड़ी थीं, उन्हें चुनकर सात की और मज़ार पर सुगंध छिड़कने लगा। बालिका दौड़-दौड़कर तितलियों को पकड़ने लगीं। यह सुलोचना का मज़ार हैं । उसकी आखिरी नसीहत थी, कि मेरी लाश जलाई न जाय, मेरो माँ की बग़ल में मुझे सुला दिया जाय । कुवर साहब तो सुलोचना के बाद छः महीने से ज्यादा न चल सके। हो, रामेद्र अपने अन्याय का पश्चात्ताप कर रहे हैं। शोभा अब तीन साल की हो गई है और उसे विश्वास है कि एक-दिन उसकी मां इसी मज़ार से निकलेगी!