पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/७१

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मानसरोवर युवक ने क्रोध के श्रावेश में वृद्ध का हाथ पकड़कर धक्का दिया। बातों से न जीतकर अब वह हाथों से काम लेना चाहता था। वृद्ध धक्का खाकर गिर पड़े। मैने लपककर इन्हें उठाया और युवक को डाटा। वह वृद्ध को छोड़कर मुझसे लिपट गया । मैं कोई कुस्तीबाज़ तो हूँ नहीं। वह लड़ना जानता था। मुझे उसने बात-की-बात मे गिरा दिया और मेरा गला दबाने लगा। कई आदमी जमा हो गये थे । जब तक कुश्ती होती रही, लोग कुश्ती का आनंद उठाते रहे, लेकिन जब देखा मुश्रामला सगीन हुश्रा चाहता है, तो तुरंत बीच-बचाव कर दिया। युवक बूढ़े बाबा से जाते-जाते कह गया-तुम अपनी लड़की को वेश्या बनाकर बाज़ार में घुमाना चाहते हो, तो अच्छी तरह घुमाओ, मुझे अब उससे विवाह नहीं करना है। वृद्ध चुपचाप खड़े थे और युवती रो रही थी। भाई साहब, तब मुझसे न रहा गया। मैंने कहा-महाशय, आप मेरे पिता के तुल्य हैं और मुझे जानते हैं । यदि श्राप मुझे इस योग्य समझ, तो मैं इन देवीजी को अपनी हृदयेश्वरी बनाकर अपने को धन्य समदूंगा। मैं जिस दशा में हूँ, आप देख रहे हैं। संभव है, मेरा जीवन इसी तरह कट जाय ; लेकिन श्रद्धा, सेवा और प्रेम यदि जीवन को सुखी बना सकता है, तो मुझे विश्वास है, कि देवीजी के प्रति मुझमे इन भावों की कमी न रहेगी । बूढ़े बाबा ने गद्गद -होकर मुझे कठ लिया । उसी क्षण मुझे अपने घर ले गये, भोजन कराया और विवाह का सगुन कर दिया। मैं एक बार युवती से मिलकर उसकी सम्मति भी लेना चाहता था । बूढ़े बाबा ने मुझे इसकी सहर्ष अनुमति दे दी। युवती से मिलकर मुझे ज्ञात हुआ, कि वह रमणियों मे रत्न है। मैं उसकी बुद्धिमत्ता देखकर चकित हो गया। मैंने अपने मन में जिस सुंदरी की कल्पना की थी, वह उससे हू-बहू मिलती है । मुझे उतनी ही देर में विश्वास हो गया, कि मेरा जीवन उसके साथ सुखी होगा। मुझे अब आशीर्वाद दीजिए। युवती आप. की पत्रिका बराबर पढ़ती है और आपसे उसे बड़ी श्रद्धा है। जून में विवाह होना निश्चय हुआ है। मैंने स्पष्ट कह दिया-मैं जेवर-कपड़े नाम-मांत्र को लाऊँगा, न कोई धूम-धाम ही करूँगा । वृद्ध ने कहा- मैं तो स्वयं यही कहनेवाला था। मैं कोई तैयारी नहीं चाहता, न धूम-धाम की मुझे इच्छा से लगा