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शांति


माता उसकी सराहना ही करेगी। उसकी आत्मा से यह आनन्द भी छीन लूँ ? लेकिन अब रात ज़्यादा हो गई है। ऊपर जाकर सो रहो। मैंने तुम्हारी चारपाई बिछा दी है ; मगर देखो, अकेले पड़े-पड़े रोना नहीं। सुन्नी ने वही किया, जो उसे करना चाहिए था। उसके पिता होते तो आज सुन्नी की प्रतिमा बनाकर पूजते।

मैं ऊपर जाकर लेटा, तो मेरे दिल का बोझ बहुत हलका हो गया था ; किंतु रह-रहकर यह सन्देह हो जाता था कि गोपा को यह शाति उसकी अपार व्यथा का ही रूप तो नहीं है।