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मानसरोवर


मैंने शान जमाई --- जमींदारों के रहने की जरुरत ही क्या है ? यह लोग ग़रीबी का खून चूसने के सिवा और क्या करते हैं ?

ठाकुर ने फिर पूछा --- तो क्या सरकार, सभी जमीदारों की ज़मीन छीन ली बायगी ? .

मैंने कहा --- बहुत-से लोग तो खुशो से दे देंगे। जो लोग खुशी से न देंगे उनकी जमीन छीननी ही पड़ेगी। हर लोग तो तैयार बैठे हुए हैं। ज्याही स्वराज्य हुआ, अपने सारे इलाके असामियों के नाम हिबा कर देंगे।

मैं कुरसी पर पाँव लटकाये बैठा था। ठाकुर मेरे पाँव दबाने लगा। फिर बोला --- आजकल जमोदार लोग बड़ा जुलुम करते हैं सरकार ! हमें भी हजूर अपने इलाके में थोड़ी-सी जमीन दे दे, तो चलकर वहीं आपकी सेवा में रहें।

' मैंने कहा --- अभी तो मेरा कोई अख्तियार नहीं है साई, लेकिन ज्योंही अस्ति- यार मिला, मैं सबसे पहले तुम्हें बुलाऊँगा। तुम्हें मोटर-ड्राइवरी सिखाकर अपना हाइवर बना लूगा।

मुना, उस दिन ठाकुर ने खूब भंग पो और अपनी स्त्री को खूब पीटा और गाँव के महाजन से लड़ने पर तैयार हो गया।

( ५ )

छुट्टी इस तरह तमाम हुई और हम फिर प्रयाग चले। गांव के बहुत-से लोग इम लोगों को पहुँचाने आये। ठाकुर तो हमारे साथ स्टेशन तक आया। मैने भी अपना, पार्ट खूब सफाई से खेला और अपनी कुवेरोचित विनय और देवत्व की मुहर हरेक हृदय पर लगा दी। जी तो चाहता था, हरेक नौकर को अच्छा इनाम दूं; लेकिन वह सामर्थ्य कहाँ थी? वापसी टिकट था ही, केवल गाड़ी में बैठना था ; पर गाड़ी आई तो ठसाठस भरी हुई। दुर्गापूजा की छुट्टियाँ भोगकर सभी लोग लौट रहे थे। सेकेण्ड क्लास में तिल रखने की जगह नहीं। इण्टर क्लास की हालत उससे भी बदतर। यह आखिरी गाड़ी थी। किसी तरह रुक न सकते थे। बड़ी मुश्किल से तीसरे दरजे में जगह मिलो। हमारे ऐश्वर्य ने वहाँ अपना रग जमा लिया , मगर मुझे उसमें बैठना बुरा लग रहा था। आये थे आराम से लेटे-लेटे, जा रहे थे सिकुड़े हुए। पहल बदलने की भी जगह न थी।

कई आदमी पढ़े-लिखे भी थे। वे आपस में अंग्रेजी राज्य की तारीफ़ करते जा