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( मानसरोवर )


मैं क्या ऐसा होता नहीं। ब्राह्मण-ठाकुर थोड़े ही थी कि नाछ कृट जायगा। यह तो उन्हीं ऊँची जातों में होता है कि घर चाहे जो कुछ करो, बाहर परदा ढका रहे। चह तो संसार को दिखाकर दसर) घर कर सकती है। फिर वह रग्घू की वैल इनकर क्यों रहे है।

भोला ॐ सरे एक महीना गुज़र चुका था। सध्या हो गई थी। पन्ना इसी चिंता में पड़ी हुई थी कि सहसा उसे ख़याल आया, लढ़के घर में नहीं हैं। यह वेल के लौटने की बेला है, कहीं कोई लड़का उनके नोचे न आ जाये। अब द्वार पर कौन है, जो उनकी देख-भाल करे। अधू को तो मेरे लड़के फूटी ऑखों नहीं भाते। भी हँसकर नहीं बोलता। घर से बाहर निकली, तो देखा, रग्घु सामने झोपड़े में बैठा रूख कौ अँडैरिय बना रहा है, तीनों लड़के उसे घेरे खड़े हैं और छोटी लड़की उसकी गर्दन में हाथ डाले उसकी पीठ पर सवार होने की चेष्टा कर रही है। पन्ना को अपनी अखिों पर विश्वास न आया। आज तो यह नई बात हैं। शायद दुनिया को दिखात है कि मैं अपने भाइयों को कितना चाहता हूँ और मन में छुरी रखी हुई है। घात मिले तो जान ही ले ले। झाला साँप है, छाला साँप। कठो स्वर में बोलो--तुम सुखके-सन वहाँ क्या करते हो ? घर में अको, साँझ की बेला है, गौरू आते होंगे।

रग्घू ने विनीत क्षेत्रों से देखकर कहा-मैं तो हूँ ही काकी, डर किस बात का है।

बड़ा लड़का बैदार बोला -- काकी, रग्घू दादा ने हमारे लिए दी गाड़ियाँ बना दी हैं। यह देख, एक पर हम और खुन्नू वैटेंगे, दूसरी पर लछमन और झुनियाँ। दादा दोनों गाड़ियाँ खींचेंगे। यह कहकर वह एक कोने से दो छोटी-छोटी गाड़ियां निकाल लाया, चार-चार पहिए लगे थे, बैठने के लिए तख्ते और रोक के लिए दोनों तरफ बाजू थे।

पन्ना ने आश्चर्य से पूछा -- ये गाड़ियों किसने बनाई ?

वेदार ने चिढ़कर कहा -- रग्घू दादा ने बनाई है, और किसने। भगत के घर से वसुला और रुखानी मग लाये और चटपट बना दी। खूब दौड़ती हैं काकी। बैठ खुन्नू, मैं खींचूँ।

'खुन्नू गाड़ी में बैठ गया। केदार खींचने लगा। वर-वर का शोर हुआ, मान गाड़ी भी इस खेल में लड़कों के साथ शरीक है।