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मानसरोवर


कर डर गया। भगर वह दब न जाता तो ज़रूर मार-पीट हो जाती। मैं खेल में न था पर दूसरों के इस खेल में मुझे वही लड़कपन का मानन्द आ रहा था, जब हम सब कुछ भूलकर खेल में मस्त हो जाते थे। अब मुझे मालूम हुभा कि कल गया ने मेरे साथ चला नहीं, केवल रोलने का बहाना किया। उसने मुझे दया का पात्र समझा। मैंने धांधली की, बेईमानियों को ; पर उसे जरा भो कोधन आया। इसी- लिए कि वह सेल न रहा था, मुझे खिला रहा था, मेरा मन रख रहा था। वह मुझे पदाकर मेरा कचूमर नहीं निकालना चाहता था। मैं भग भापर हूँ। यह अफसरी मेरे और उसके बीच में दीवार बन गई है। मैं अब उसका लिहाज़ पा सकता हूँ, भदव पा सकता हूँ, साहचर्य नहीं पा सकता। लड़कपन था, तब मैं उसका समकक्ष था। इममें कोई भेद न था। यह पद पाकर अब मैं केवल उसको दया के योग्य हूँ। यह मुझे अपना जोड़ नहीं समझता। वह बड़ा हो गया है, मैं छोटा हो गया हूँ।