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मानसरोवर

सोहन को इन शब्दों में स्नेह की गन्ध आई।

'धोबिन पैसे मांगती है।'

'तो पैसे अम्मो से क्यों नहीं माग लेते?'

'अम्मा कौन पैसे दिये देती हैं।'

'तो मुझसे ले लो।

यह कहकर उसने एक इकन्नी उसकी ओर फेंक दी। सोहन प्रसन्न हो गया। भाई और माता दोनों ही उसे धिक्कारते रहते। बहुत दिनों बाद आज उसे स्नेह को मधुरता का स्वाद मिला। इकनी उठा लो और धोती को वहीं छोड़कर गाय को खोलकर ले चला।

मोहन ने कहा --- तुम रहने दो, मैं इसे लिये जाता हूँ।

सोहन ने पहिया भाई को देकर फिर पूछा --- तुम्हारे लिए चिलम रख लाऊँ ?

जीवन में आज पहली बार सोहन ने भाई के प्रति ऐसा सद्भाव प्रकट किया था। इसमें क्या रहस्य है, यह मोइन को समझ में न भाया। बोला --- आग हो तो रख लाओ।

मैना सिर के बाल खोले आंगन में बैठी घरौंदा बना रही थी। मोहन को देखते हो उसने घरौंदा बिगाड़ दिया और अञ्चल से बाल छिपाकर रसोई-घर में मरतन उठाने चली।

मोहन ने पूछा --- क्या खेल रही थी मैना ?

मैना डरी हुई बोली --- कुछ तो नहीं।

'तू तो बहुत अच्छे घरौंदे बनाती है। जरा बना, देखें।'

मैना का आसा चेहरा खिल उठा। प्रेम के शब्द में कितना जाद है। मुंह से निकलते ही जैसे सुगन्ध फैल गई। जिसने सुना, उसका हृदय खिल उठा। जहाँ भय था, वहाँ विश्वास चमक उठा। जहाँ कटुता थी, वहाँ अपनाया छळा पड़ा। चारों ओर चेतनता दौड़ गई। कहीं आलस्य नहीं, कहीं 'खिन्नता नहीं। मोहन का हृदय आज प्रेम से भरा हुआ है। उसमें सुगन्ध का विकर्षण हो रहा है।

मैना घरौंदा बनाने बैठ गई।

मोहन ने उसके उलझे हुए गलों को सुलझाते हुए कहा --- तेरी गुड़िया का ध्याह व होगा मैना, नेवता दे, कुछ मिठाई खाने को मिले।