मैना का मन आकाश में उड़ने लगा। अब भेया पानो मांगे, तो वह लोटे को राख से खूब चमाचम करके पानी ले जायगी।
'अम्माँ पैसे नहीं देती। गुड्डा तो ठीक हो गया है। टीका कैसे भेजू?'
'कितने पैसे लेगी ?'
‘एक पैसे के बतासे लूंगो और एक पैसे का रङ्ग। जोड़े तो रँगे जायेंगे कि नहीं।'
'तो दो पैसे में तेरा काम चल जायगा।'
'हाँ, दो पैसे दे दो भैया, तो मेरी गुड़िया का ब्याह धूमधाम से हो जाय ।'
मोहन ने दो पैसे हाथ में लेकर मैना को दिखाये। मैना लपकी, मोहन ने हाथ ऊपर उठाया, मैना ने हाथ पकड़कर नीचे खींचना शुरू किया। मोहन ने उसे गोद में उठा लिया। मैना ने पैसे ले लिये और नीचे उतरकर नाचने लगी। फिर अपनी सहे- लियों को विवाह का नेवता देने के लिए भागी। उसी वक्त बूटो गोबर का झौवा लिये आ पहुँची। मोहन को खड़े देखकर कठोर स्वर में बोली --- अभी तक मटरगस ही हो रही है। भैस कब दुही जायगी ?
आज बूटी को मोहन ने विद्रोह-भरा जवाब न दिया। जैसे उसके मन में माधुर्य का कोई सोता-सा खुल गया हो । माता को गोबर का बोझ लिये देखकर उसने झौवा उसके सिर से उतार लिया।
बूटी ने कहा --- रहने दे, रइने दे, जाकर भैंस दुइ, मैं तो गोबर लिये जातो हूँ।
'तुम इतना भारी बोम्म क्यों उठा लेती हो, मुझे क्यों नहीं बुला लेतो?'
माता का हृदय वात्सल्य से गद्गद हो उठा।
'तु जा, अपना काम देख। मेरे पोछे क्यों पड़ता है।'
'गोबर निकालने का काम मेरा है।'
'और दूध कौन दुहेगा ?
'वह भी मैं हो करूंगा।'
'तू इतना बड़ा जोधा है कि सारे काम कर लेगा?'
'जितना कहता हूँ उतना कर लूंगा।'
'तो मैं क्या करूँगी !'
'तुम लड़कों से काम लो, जो तुम्हारा धर्म है।'
'मेरी सुनता है कोई ?'