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मानसरोवर

( ३ )

आज मोहन बाजार से दूध पहुँचाकर लौटा, तो पान, कत्था, सुपारी, एक छोटा- सा पानदान और थोड़ी-सी मिठाई लाया। बूटी बिगड़कर बोली-आज पैसे कहीं फालतू मिल गये थे क्या ? इस तरह उड़ावेगा तो के दिन निबाह होगा ?

'मैंने तो एक पैसा भी नहीं उड़ाया अम्माँ। पहले मैं समझता था, तुम पान खातों ही नहीं।'

'तो अब मैं पान खाऊँगी ?'

'हाँ, और क्या ? जिसके दो-दो जवान बेटे हों, क्या वह इतना शौक भी न करे।

बूटी के सूखे कठोर हृदय में कहाँ से कुछ हरियाली निकल आई, एक नन्ही-सी कोपल थी, लेकिन उसके अन्दर कितना जीवन, कितना रस था। उसने मैना और सोइन को एक-एक मिठाई दे दो और एक मोहन को देने लगी।

'मिठाई तो लड़कों के लिए लाया था अम्माँ।'

'और तू तो बूढ़ा हो गया, क्यों ?'

'इन लड़कों के सामने तो बूढ़ा ही हूँ।'

'लेकिन मेरे सामने तो लड़का हो है।'

मोहन ने मिठाई ले ली। मैना ने मिठाई पाते ही गप से मुँह में डाल ली थी। बह केवल मिठास का स्वाद जीभ पर छोड़कर काकी गायब हो चुकी थी। मोहन को मिठाई को ललचाई आँखों से देखने लगी। मोहन ने आधा लड्डू तोड़कर मैना को दे दिया। एक मिठाई दोने में और बची थी। बूटी ने उसे मोहन की तरफ बढ़ाकर कहा-लाया भी तो इतनी-सो मिठाई। यह ले ले।

मोहन ने आधी मिठाई मुंह में डालकर कहा --- वह तुम्हारा हिस्सा है अम्माँ !

'तुम्हें खाते देखकर मुझे जो आनन्द मिलता है, उसमें मिठास से ज़्यादा स्वाद है।'

उसने आधी मिठाई सोहन को और आधी मोहन को दे दी ; फिर पानदान खोलकर देखने लगी। आज जीवन में पहली बार उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ। धन्य भाग कि पति के राज में जिस विभूति के लिए तरसती रही, वह लड़के के राज में मिली। पानदान में कई कुल्हियां हैं। और देखो, दो छोटी-छोटी चिमचियां भी हैं,