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मानसरोवर


की बान किसी तरह नहीं बच सकती। फिर वह क्यों दबे और क्यों न जान पर खेल- कर तैमर के प्रति उसके मन में को घृणा है, उसे प्रस्ट कर दे। उसने एक बार कातर नेत्रों से उस रूपवान् युवक की और देखा, जो उसके पीछे खड़ा जैसे अपनी भवानी की लगाम खींच रहा था। सान पर चढ़े हुए, इसपात के समान उसके अंग अंग से अतुल क्रोध की चिनगारियां निकल रही थी। यज़दानी ने उसकी सूरत देखी और से अपनी खींचो हुई तस्चार म्यान में कर ली और खून के घुट पीकर बोला- जहाँपनाह इस वक फ़तहमन्द हैं, लेकिन अपराध क्षमा हो तो कह दूं कि अपने बीवन के विषय में तुर्को को तातारियों से उपदेश लेने की ज़रूरत नहीं । दुनिया से अलग, तातार के असर मैदानों में, त्याग और व्रत की उपासना की जा सकती है, और न मयस्सर होनेवाले पदार्थों का बहिष्कार किया जा सकता है पर नहा खुदा है नेमतों की वर्षा की हो, वहाँ उन नेमतों का भोग न करना नाशुक्री है। अगर तलवार ही सभ्यता की सनद होती, तो गाल कौम रोमनों से कहीं ज्यादा सभ्य होती।

तैमूर ज़ोर से हंसा और उसके सिपाहियों ने तलवारों पर हाथ रख लिये । तैमूर का टहाका मौत का ठहाका था, या गिरनेवाले वज्र का तडाका।

'तातारवाले पशु है, क्यों?'

'मैं यह नहीं कहता।

'तुम कहते हो, खुदा ने तुम्हें ऐश करने के लिए पैदा किया है। मैं कहता हूँ यह कुम है । खुदा ने इन्सान को बन्दगी के लिए पैदा किया है और इसके खिलाफ जो कोई कुछ करता है वह काफिर है, जहन्नुमो। रसूलेपाक हमारी ज़िन्दगी को पाक करने के लिए, हमें सच्चा इन्सान बनाने के लिए, आये थे, हमें दराम की तालीम देने नहीं ! तैमूर दुनिया को इस कुझ से पाक कर देने का बीड़ा उठा चुका है। रसूले- पाक के पदों को कसम, मैं बेरहम नहीं हूँ, झालिम नहीं हूँ, खूख्वार नहीं हूँ; लेकिन कुम को सजा मेरे ईमान में मौत के सिवा कुछ नहीं है।'

उसने तातारी सिपहसालार की तरफ क्रातिल नजरों से देखा और तत्क्षण एक देव-सा मादमी तलवार सोतकर यशदानी के सिर पर आ पहुँचा । तातारी सेना भी तलवारें खींच-सोचकर तुर्की सेना पर टूट पड़ी और दम-केदम में कितनी हो लाशें ज़मीन पर फड़कने लगी।