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दिल की रानी

( २ )

सहसा वही रूपवान् युवक, जो यज़दानी के पीछे खदा था, आगे बढ़कर तैमूर के सामने आया और जैसे मौत को अपनी दोनों बँधी हुई मुट्टियों में मसलता हुआ बोला-ऐ अपने को मुसल्मान कहने वाले बादशाह ! क्या यही वह इसलाम है, जिसकी तबलीग का तने बीक्षा उठाया है ? इसलाम को यही तालीम है कि तू उन बहादुरों का इस बेददी से खून बहाये, जिन्होंने इसके सिवा कोई गुनाह नहीं किया कि अपने खलीफा और अपने मुल्क की हिमायत की।

चारों तरफ सन्नाटा छा गया। एक युवक, जिसको भभो मसे भी न भीगी थीं, तैमूर जैसे तेजस्वी बादशाह का इतने खुले हुए शब्दों में तिरस्कार करे और उनकी जबान तालु से न खिचवा ली जाय ! सभी स्तम्भित हो रहे थे भौर तैमूर सम्मोहित. सा बैठा उस युवक को ओर ताक रहा था।

युवक ने तातारी सिपाहियों की तरफ, जिनके चेहरे पर कुतूहलमय प्रोत्साहन मालक रहा था, देखा और बोला तू हन मुसलमानों को काफिर कहता है और समझता है कि तू इन्हें कल करके खुदा और इसलाम की खिदमत कर रहा है। मैं तुमसे पूछता हूँ, भगर वह लोग जो ख़ुदा के सिवा और किसी के सामने सिजदा नहीं करते, जो रसूले पाक को अपना रहबर समझते हैं, मुसलमान नहीं है, तो कोन मुसलमान है ? मैं कहता हूँ हम काफिर सही, लेकिन तेरे तो हैं, क्या इसलाम अञ्जोर में बंधे हुए कैदियों के करल को इजाजत देता है ? खुदा ने अगर तुझे ताकत दो है, अख्तियार दिया है, तो क्या इसी लिए कि तू खुदा के बन्दों का खून बहाये ? क्या गुनहगारों को करल करके तू उन्हें सौधे रास्ते पर ले जायगा ? तूने कितनी बेरहमी से सत्तर हजार बहादुर तुर्कों को धोखा देकर सुरग से उदवा दिया, और उनके मासूम बच्चों और निरपराध स्त्रियों को अनाथ कर दिया, तुझे कुछ अनुमान है ? क्या बही कारनामे हैं, जिन पर तू अपने मुसलमान होने का गर्व करता है। क्या इसौ करल, खून और जुल्म को सियाही से तू दुनिया में अपना नाम रोशन करेगा ! तूने तुकों के खून के बहते दरिया में अपने घोड़ों के सुम नहीं भिगोये हैं, बल्कि इसलाम को जर से खोदकर फेंक दिया है। यह वीर तुर्को का ही आत्मोत्सर्ग है, जिसने यूरोप में इसलाम को तोहोद फैलाई। आज सोफ़िया के गिरजे में तुझे अल्लाह अकबर को सदा सुनाई दे रही है, सारा यूरोप इसलाम का स्वागत करने को तैयार है । क्या