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दिल की रानी


जल रही थी। अगर को सुगन्ध से सारा दीवानखाना महक रहा था। हबीब भी उठने ही को था कि चौबदार ने खबर दी-हुजूर, जहाँपनाह तशरीफ़ ला रहे हैं।

हबीब इस खबर से कुछ प्रमन्न नहीं हुआ। अन्य मन्त्रियों को भांति वह तैमर श्री सोहबत का भूखा नहीं है। वह हमेशा तैमूर से दूर रहने की चेष्टा करता है। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि उसने शाही दस्तरखान पर भोजन किया हो। तैनर को मजलिसों में भी वह कभी शरीक नहीं होता। उसे जक शाति मिलती है, व एकान्त में अपनी माता के पास बैठकर दिन भर का माजरा उससे कहता है और यह उस पर अपनी पसन्द की मुहर लगा देती है।

उसने द्वार पर जाकर तैमूर का स्वागत किया। तैमूर ने मसनद पर बैठते कहा --- मुझे ताज्जुब होता है, कि तुम इस जवानी में ज़ाहिदों की-सी जिन्दगी कैसे पसर करते हो हयोग ! खुदा ने तुम्हें यह हुस्न दिया है कि हसीन-से-हसीन नाज़नीन भी तुम्हारी माशूद बनकर अपने को खुशनसीब समझेगी। मालूम नहीं, तुम्हें खबर है या नहीं, जब तुम अपने मुश्की घोड़े पर सवार होकर निकलते हो, तो समरबन्द की खिड़कियों पर हजारों आखें तुम्हारी एक झलक देखने के लिए मुन्तजिर बैठी रहती हैं , पर तुम्हें किसी न किसी तरफ आँखें उठाते नहीं देखा। मेरा खुदा गवाह है, मैं कितना चाहता हूँ कि तुम्हारे कदमों के नक्श, पर चलूँ, पर दुनिया मेरी गर्दन नहीं छोड़ती। क्यों अपनों पाक जिन्दगी का जादू मुम्स पर नहीं डालते ? मैं चाहता हूँ, जैसे तुम दुनिया में रहकर भी दुनिया से अलग रहते हो, वैसे मैं भी रहूँ; लेकिन मेरे पास न वह दिल है, न वह दिमाग मैं हमेशा अपने आप पर, सारी दुनिया पर, दांत पीसता रहता हूँ। जैसे मुझे हरदम खून की प्यास लगी रहती है, जिसे तुम बुकने नहीं देते, और यह.जानते हुए भी कि तुम जो कुछ करते हो, इससे बेहतर कोई दूसरा नहीं कर सकता। मैं अपने गुस्से को काबू में नहीं कर सकता। तुम जिवर से निकलते हो, मुहब्बत और रोशनी फैला देते हो। जिसको तुम्हारा, दुश्मन होना चाहिए, वह भी तुम्हारा दोस्त है। मैं जिधर से निकलता हूँ, नफरत और शुबहा फैलाता हुआ निकलता हूँ जिसे मेरा दोस्त होना चाहिए, वह भी मेरा दुश्मन है। दुनिया में बस यही एक जगह है जहाँ मुझे आफियत मिलती है। अगर तुम समझते हो, यह ताज और तख्त मेरे रास्ते के रोड़े हैं तो खुदा को क्रसम में आज इन पर लात मार दें। मैं आज तुम्हारे पास यहो दरख्वास्त लेकर आया हूँ