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मानसरोवर

( ७ )

इस्तखर अरमनो ईसाइयों का इलाका था। मुसलमानों ने उन्हें परास्त करके वहाँ अपना अधिकार जमा लिया था और ऐसे नियम बना दिये थे, जिससे ईसाइयों को पा पग पर अपनी पराधीनता का स्मरण होता रहता था। पहला नियम जजिए का था, जो हरेक ईसाई को देना पड़ता था, जिससे मुसलमान मुक्त थे। दूसरा नियम यह था कि गिजों में घण्टा न वजे। तीसरा नियम मदिरा का था, जिसे मुसलमान हराम समझते थे। ईसाइयों ने इन नियमों का क्रियात्मक विरोध किया और जब मुसलमान अधिकारियों ने शस्त्रबल से काम लेना चाहा, तो ईसाइयों ने बगावत कर दी, मुसलमान सूबेदार को कैद कर लिया और किले पर सलीबी झण्डा उड़ने लगा।

हबीब को यहाँ आज दूसरा दिन है ; पर इस समस्या को कैसे हल करे। उसका उदार हृदय कहता था, ईसाइयों पर इन वन्धनों का कोई अर्थ नहीं, हरेक धर्म का समान रूप से आदर होना चाहिए, लेकिन मुसलमान इन क्लदों को उठा देने पर कभी राज़ी न होंगे। और यह लोग मान भी जाय तो तैमूर क्यों मानने लगा ? उसके धार्मिक विचारों में कुछ उदारता आई है, फिर भी वह इन कैदों को उठाना कभी मजूर न करेगा। लेकिन क्या वह ईसाइयों को सजा दे कि वे अपने धार्मिक स्वाधीनता के लिए लड़ रहे हैं। जिसे वह सत्य समझता है, उसकी हत्या कैसे करे ? नहीं, उसे सत्य का पालन करना होगा, चाहे इसका नतीजा कुछ भी हो। अमीर सम- झेंगे, मैं जरूरत से ज्यादा बढ़ा जा रहा हूँ। कोई मुज़ायका नहीं।

दूसरे दिन हबोक ने प्रातःकाल डके को चोट एलान कराया-अज़िया माफ शिया गया, शराब और यष्टों पर कोई कैद नहीं है।

मुसलमानों में तहलका पड़ गया। यह कुझ है, हरामपरस्ती है। अमौर तैमूर ने लिस इस्लाम को अपने खून से सींचा, उसकी जद उन्ही के वजीर हबीब पाशा के हार्थों खुद रही है। पासा पल्ट गया। शाही फौजें मुसलमानों से जा मिली। हबीब ने इस्तखर के किले में पनाह लो। मुसलमानों को ताकत शाही फौज के मिल जाने से बहुत बढ़ गई थी। उन्होंने किला घेर लिया और यह समझकर कि हबीब ने तैमूर से बगावत को है, तैमूर के पास इसको सूचना देने और परिस्थिति समझाने के लिए , क्रासिद भेजा।