पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१९९
दिल की रानी

( ८ )

आधी रात गुजा चुकी थी। तैमूर को दो दिनों से इस्तखर की कोई खबर न मिली थी। तरह-तरह को शकाएं हो रहो थी। मन में पछतावा हो रहा था कि उसने क्यों हमोव को अकेला जाने दिया। माना कि वह बड़ा नीतिकुशल है, पर बगावत कही जोर पकड़ गई, तो मुठो भर आदमियों से वह क्या कर सकेगा? और पगावत यकोनन् जोर पकड़ेगी। वहाँ के ईसाई बला के सरकश हैं। जब उन्हें मालूम होगा कि तैमूर को तलवार में जंग लग गया और उसे अब महलों को जिन्दगी पसन्द है, तो उनको हिम्मत दूनो हो जायगी। हबीब कहीं दुश्मनों में घिर गया, तो महा गजम हो जायगा।

उसने अपने जानू पर हाथ मारा और पहलू यदलकर अपने ऊपर झुंझलाया। वह इतना पस्त-हिम्मत क्यों हो गया ? क्या उसका तेज और शौर्य उससे विदा हो गया ? जिसका नाम सुनकर दुश्मनों में उम्पन पड़ जाता था, वह आज अपना मुँह छिपाकर महलों में बैठा हुआ है। दुनिया को आँखों में इसका एक हो अर्थ हो सकता है कि तैमूर अब मैदान का शेर नहीं, कालोन का शेर हो गया। होश फरिश्ता है, नो इन्सान को बुराइयों से वाकिफ नहीं। जो रहम और सादिलो और बेगरजी का देवता है, वह क्या जाने इन्सान कितना शैतान हो सकता है । अमन के दिनों में तो ये बातें कौम ओर मुल्क को तरकी के रास्ते पर ले जाती हैं, पर जग में, जन कि शेतातो जोश का तूफान उठता है, इन ख्यियों को गुजाइश नहीं। उस वक्त तो उसी की जीत होती है, जो इन्सानी खून का रंग खेले, श्वेतों-खलिहानों की होली जलाये, जगलों को बसाये और पस्तियों को वीरान करे। अमन का कानून जा के कानून से बिलकुल जुदा है।

सहमा चारदार ने इस्तखर से एक क़ासिद के आने की खबर दी। क़ासिद ने ज़मीन चूमी और एक किनारे भक्ष से खड़ा हो गया। तैमूर का रोष ऐसा छा गया कि जो कुछ कहने आया था, वह सब भूल गया।

तैमूर ने त्योरियां चढ़ाकर पूछा --- क्या खबर लाया है ? तीन दिन के बाद आया भी तो इतनी रात गये ?

क़ासिद ने फिर ज़मीन चूमी और बोला --- खुदावन्द, वज़ीर साहब ने जज़िया मुआफ कर दिया।