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मानसरोवर

तैमूर गरज उठा --- क्या कहता है, जजिया माफ कर दिया ?

'हां, खुदावन्द।'

'वज़ीर साहब ने।'

'किसके हुक्म से ?'

'अपने हुक्म से हुजूर।'

'और हुजूर, शराब का भी हुक्म दे दिया।'

'मिरजों में घण्टे बजाने का भी हुक्म हो गया।'

'और खुदावन्द ईसाइयों से मिलकर मुसलमानों पर हमला कर दिया।'

'तो मैं क्या करूँ।'

'हुजूर हमारे मालिक हैं। अगर हमारी कुछ मदद न हुई, तो वहाँ एक मुसल- मान भी जिन्दा न बचेगा।'

'हबीब पाशा इस दख्त कहाँ है ?'

'इस्तख़र के किले में हुजूर।'

'और मुसलमान क्या कर रहे हैं।'

'हमने ईसाइयों को किले में घेर लिया है।'

'उन्हीं के साथ हबीब को भी।'

'हाँ हुजूर, वह हुजूर, से बागी हो गये है।'

'और इसलिए मेरे वफादार इस्लाम के खादिमों ने उन्हें कैद कर रखा है। मुमकिन है मेरे पहुँचते-पहुंचते उन्हें कल भी कर दें। बदनात दूर हो जा मेरे सामने से। मुसलमान समझते हैं हनीष मेरा नौकर है और मैं उसका आक्रा हूँ। यह गलत है, झूठ है। इस सल्तनत का मालिक हबीब है, तैमूर उसका अदना गुलाम है। उसके फैसले में तैसूर दस्तन्दाजी नहीं कर सकता। बेशक जज़िया मुआफ होना चाहिए। मुझे कोई मजाज़ नहीं है कि दूसरे मजहबवालो से उनके ईमान का तावान ढूं। कोई मजाज नहीं है; अगर मस्जिद में अजान होती है, तो कालीसा में घण्टा क्यों