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मानसरोवर

हबीब के चेहरे का रंग, उड़ रहा था। कहीं इक्रोक्रत खुळ तो नहीं गई ? वह क्या तजबीज है, उसके मन में खलबली पड़ गई।

तैमूर ने मुस्कराकर पूछा --- तुम मुझसे लड़ने को तैयार थे ?

हबीब ने शरमाते हुए कहा --- हक के सामने अमीर तैमूर को भी कोई हकीकत नहीं।

बेशक बेशक तुममें फरिश्तों का दिल है, तो शेरों की हिम्मत भी है। लेकिन अफसोस यही है कि तुमने यह गुमान ही क्यों किया कि तैमूर तुम्हारे फैसले को भन्सूस कर सकता है । यह तुम्हारी लात है, जिसने मुझे बतलाया है कि सल्तनत किसी आदमी को जायदाद नहीं, बल्कि एक ऐसा दरख्त है जिसकी हरेक शाख और पत्तो एक-सी खुराक पाती है।'

दोनों किले में दाखिल हुए। सूरज डूब चुका था। आन-को-आन में दरबार लाए गया और उसमें तैमूर ने ईसाइयों के धार्मिक अधिकारों को स्वीकार किया।

चारों तरफ से आवाज़ आई-खुदा हमारे शाहंशाह की उन्न दराज़ करे।

तैम ने उसी सिलसिले में कहा-दोस्तो, मैं इस दुआ का हकदार नहीं हूँ। यो चीज़ मैंने आपसे जबरन ली थी, उसे आपको वापस देकर मैं दुआ का काम नहीं कर रहा हूँ, इससे कहीं ज्यादा मुनासिब यह है कि आप मुझे लानत है कि मैंने इतने दिनों तक आपके हकों से आपको महरूम रखा।

चारों तरफ से आवाज आई-मरहबा-मरहबा !!

दोस्तों, उन हकों के साथ-साथ मैं भापको सलतनत भी भापको वापस करता हुँ । क्योंकि खुदा की निगाह में सभी इन्सान बराबर हैं और किसी कौम या शख्स का दूसरी कोम पर हुकूमत करने का अख्तियार नहीं है। आज से आप अपने बादशाह हैं। मुझे उम्मीद है कि आप भी मुस्लिम आबादी को उसके जायज हक्कों से महरूम न करेंगे। अगर कभी ऐसा मौका माये कि कोई जाबिर क्रोम आपको आजादी छीनने की कोशिश करे, तो तैमूर आपको मदद करने को हमेशा तैयार रहेगा।

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किले में प्रश्न खतम हो चुका है। समरा और हुकाम रुखसत हो चुके हैं। दोवाने-खास में सिर्फ तैमूर और हयाब रह गये हैं। हबीब के मुख पर आज स्मित झोस्य की बह छटा है, जो सदैव गम्भीरता के नीचे दबो रहती थी। भाव उसके