कपोलों पर जो लाली, आंखों में नशा, अगों में जो चचलता है, तो और कभी नज़र
न आई थी। वह कई बार तैमूर से शोखियां कर चुका है, कई बार हंसो कर चुका
है, उसको युवती चेतना, पद और अधिकार को भूलकर चहकती फिरती है।
सहसा तैसूर ने कहा --- हबीब, मैंने आज तक तुम्हारी हरेक बात मानी है। अब मैं तुम वह तजवीज करता हूँ, जिसका मैंने जिक्र किया था, उसे तुम्हें कबूल करना पड़ेगा।
हबीब ने धड़कते हुए हृदय से सिर झुकाकर कहा --- फरमाइए !
'पहले वादा करो कि तुम कबूल करोगे ।'
'मैं तो आपका गुलाम हूँ।'
'नहीं, तुम मेरे मालिक हो, मेरी ज़िन्दगो को रोशनो हो, तुमसे मैंने जितना फैज़ पाया है, उसका अन्दाजा नहीं जा सकता ? मैंने अब तक सलतनत को अपनी जिन्दगी की सबसे प्यारो चौज़ समझा है। इसके लिए मैंने सब कुछ किया, जो मुझे न करना चाहिए था। अपनों के खून से भी इन हाथों को दागदार किया, औरों के खून से भी। मेरा काम अम खत्म हो चुका। मैंने बुनियाद जमा दो, इस पर महल घनाना तुम्हारा काम है। मेरी यही इल्तजा है कि आज से तुम इस बादशाहत के अमीन हो जाओ, मेरी जिन्दगी में भी और मेरे मरने के बाद भी।
हबीब ने आकाश में उड़ते हुए कहा --- इतना बड़ा मोन्ह ! मेरे कन्धे इतने मज़. बूत नहीं हैं।
तैमूर ने दीन आग्रह के स्वर में कहा --- नहीं, मेरे प्यारे दोस्त, मेरो यह इल्ताना तुम्हें माननी पड़ेगी।
हपौष की आँखों में हँसो थी, अधरों पर सकोच। उसने आहिस्ता से कहा- मजूर है।
तैमूर ने प्रफुल्लित स्वर में कहा --- खुदा तुम्हें सलामत रखे।
'लेकिन अगर आपको मालूम हो जाय कि हबीब एक कच्ची अक्ल को क्वाँरी बालिका है तो?'
'तो वह मेरो बादशाहत के साथ मेरे दिल को भी रानी हो जायगी।'
'आपको बिलकुल ताज्जुब नहीं हुआ ? जानता था।'