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अलग्योझा

मुलिया अपनी कोठरी में पड़ी सुन रही थी। बाहर आकर बोलो---भइया ने तो नहीं डाँटा, अव्वा तुम आकर डॉटौ।

केदार के चेहरे का रस उड़ गया। फिर जबान न खोली। तोनों लड़कों ने खाना खाया, और बाहर निकले। लू चलने लगी थी। आम के बास में गाँव के लड़के-लड़कियाँ हवा से गिरे हुए आम चुन रहे थे। केदार ने कहा--आज हम भो आम चुनने चलें, खूब आम गिर रहे हैं।

खुन्नू--- दादा जो बठे हैं ?

लछमन --- मैं न जाऊँगा, दादा घुड़केंगे।

केदार--- वह तो अब अलग हो गये।

लछमन---तो अब हमको कोई मारेगा, तब भी दाद न बोलेंगे ?

केदार ---वाह, तब क्यों न बोलेंगे ?

रग्घू ने तीनों लड़कों को दरवाजे पर खड़े देखा ; पर कुछ बोला नहीं। पहले तो वह घर के बाहर निकलते ही उन्हें डाँट बैठता था पर आज वह मूर्ति के समान निश्चल बैठा रहा। अध लड़ को कुछ साहस हुआ : कुछ दूर और आगे बढ़े। रग्घू अब भो न बोळा, कैसे बोले वह सोच रहा था, काकी ने लड़कों को खिलापिला दिया, मुझसे पूछा तक नहीं। बच्चा उसकी आँखों पर-भौ परदा पड़ गया है। अगर मैंने लड़की को पुछारा और वह न आये तो ? मैं उनको मार-पीट तो न सकुँगा ! लू में सब मारे सारे फिरंगे। कहीं बोमर न पड़ जायँ उसका दिल मौसकर रह जाता था, लेकिन मुंह से कुछ कह न सकता था। लड़कों ने देखा कि यह बिलकुल नहीं बोलते, तौ निर्भय होकर चल पड़े।

सहसा मुलिया ने आकर कहा ---अब तो उठोगे कि अब भी नहीं ? जिनकै नाम पर फाक़ा कर रहे हो, उन्होंने मजे से लड़कों को खिलाया और आप खाया, अन आराम से सी हो हैं। ‘भोर पिया बात न पूछे, मोर सुहागिन नाँव।' एक बार भी तो मैं इ से न झुटा कि चलो भइया, खा लो।

रग्घू को इस समय सन्तक पीड़ा हो रही थी। सुलिया के इन कठोर शब्दों ने घाव पर नमक छिड़वा दिया। दुःखित नेत्रों से देखन्नर बोला--तेरी जो मर्जी थी, चही तो हुआ। अब जा ढोल बजा !

मुलिया---नहीं, तुम्हारे लिए था परोसे बैठी हैं।