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धिक्कार

इन्द्रनाथ ने गद्गद स्वर में कहा --- तुम्हारे पैरों पढ़ता हूँ मानो, खोल दो। यह स्नेह में डूबा हुआ विनय मानो के लिए अभूतपूर्व था। इस निर्दय संसार में कोई उससे ऐसो विनतो भो का सकता है, इपको उसने स्वप्न में भो कसना न को थी। मानो ने कांपते हुए हाथों से द्वार खोल दिया। इन्द्रनाथ हाटकर कमरे में घुसा, देखा कि छत के पखे के कड़े से एक रस्सो लटक रही है। उसका हृदय कांप उठा। उसने तुरन्त जेब से चाकू निकालकर रस्सी काट दो और बोला, क्या करने जा रहो थो मानी, जानतो हो इस अपराध का क्या दंड है।

मानी ने गर्दन झुकाकर कहा --- इस दण्ड से कोई ओर दण्ड कठोर हो सकता है ? जिसको सूरत से लोगों को घृणा हो उसे मरने पर भी अगर कठोर दण्ड दिया जाय, तो मैं यहो कहूँगो कि ईश्वर के दरमार में न्याय का नाम भी नहीं है। तुम मेरो दशा का अनुभव नहीं कर सकते।

इन्दनाथ को आंखें सजल हो गई। मानो की बातों में कितना कठोर सत्य भरा हुआ था। बोला --- सदा यह दिन नहीं रहेंगे मानो , अगर तुम यह समझ रहो हो कि संसार में तुम्हारा कोई नहीं है तो यह तुम्हारा भ्रम है। संसार में कम से कम एक मनुष्य ऐसा है जिसे तुम्हारे प्राण अपने प्राणों से भी प्यारे हैं।

सहसा गोकुल आता हुआ दिखाई दिया। मानो कमरे से निकल गई। इन्द्रनाथ के शब्दों ने उसके मन में एक तूफान-सा उठा दिया था। उसका क्या आशय है, यह उसको समझ में न आया। फिर भी आम उसे अपना जीवन सार्थक मालूम रहा था। उसके अधधारमय जीमन में एक प्रकाश का उदय हो गया था।

( ३ )

इन्द्रनाथ को वहा बैठे और मानी को कमरे से जाते देखकर गोकुल कुछ खटक गया। उसको त्योरियां बदल गई। कठोर स्वर में बोला-तुम यहां कव आये ?

इन्द्रनाथ ने अविचलित भाव से कहा --- तुम्हों को खाजता हुमा यहाँ आया था। तुम यहाँ न मिले तो नीचे लोटा जा रहा था ; अगर मैं चला गया होता तो इस वचः तुम्हें यह कमरा बन्द मिलता और पखे के कड़े में एक लाश लटकतो हुई नजर आती।

गोकुल ने समझा यह अपने अपराध को छिराने के लिए कोई बहाना निकाल रहा है। तीन कठ से बोला --- तुम यह विश्वासघात करोगे, मुझे ऐसो आशा न थी।

इन्द्रनाथ का चेहरा लाल हो गया। वह मावेश में आकर खहा गया और