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धिक्कार


और सच पूछो तो मैं उसके स्वभाव पर मुग्ध हो गया हूँ। ऐसी स्त्री अत्याचार नहीं सह सकती।

गोकुल ने डरते-डरते कहा --- लेकिन तुम्हें मालूम है-वह विधवा है।

जब हम किसी के हाथों अपना असाधारण हित होते देखते हैं तो हम अपनो सारी बुराइयाँ उसके सामने खोलकर रख देते हैं। हम उसे दिखाना चाहते है कि हम आपको इस कृपा के सर्वथा अयोग्य नहीं है।

इन्द्रनाथ ने मुसकराकर कहा --- जानता हूँ, सुन चुका हूँ और इसीलिए तुम्हारे बाबूजी से कुछ कहने का मुझे मन तक साहस हुआ , लेकिन न जानता वो भी इसका मेरे निश्चय पर कोई असर न पड़ता । मानी विधवा हो नहीं, अछूत हो, उससे भी गई बीती अगर कुछ हो सकती है वह भी हो, फिर भी मेरे लिये वह रमणी-रत्न है। हम छोटे-छोटे कामों के लिए तजुर्वकार आदमो खोजते हैं , मगर जिस के साथ हमें जीवनयात्रा करनी है, उसमें तजुर्वे का होना ऐव समझते हैं। मैं न्याय का गला घोटनेवालों में नहीं हूँ। विपत्ति से बढ़कर तजर्षा सिखानेवाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। जिसने इस विद्यालय में डिग्री ले लो, उसके हाथों में हम निश्चिन्त होकर जीवन की बाग-डोर दे सकते हैं। किसो रमणी का विधवा होना मेरी आँखों में दोष नहीं, गुण है।

गोकुल ने प्रसन्न होकर --- लेकिन तुम्हारे घर के लोग।

इन्द्रनाथ ने दृढ़ता से कहा --- मैं अपने घरवालों को इतना मूर्ख नहीं समझता कि इस विषय में आपत्ति करें; लेकिन आपत्ति करें भी तो मैं अपनी किस्मत अपने हाथ में ही रखना पसन्द करता हूँ। मेरे बड़ों को मुझ पर अनेको अधिकार हैं। बहुत सी बातों में मैं उनकी इच्छा को कानून समझता हूं लेकिन जिस बात को मैं अपनी आत्मा के विकास के लिए शुभ समझता है, उसमें मैं किसी से दवाना नहीं चाहता। में इस गर्व का आनन्द उठाना चाहता हूँ कि मैं स्वय अपने भोवन का निर्माता हूँ।

गोकुल ने कुछ शकित होकर कहा --- और अगर मानी न मजूर करे।

इन्द्रनाथ को यह शका बिलकुल निर्मूल जान पड़ी। बोले --- तुम इस समय बच्चों की-सी बातें कर रहे हो गोकुल। यह मानी हुई बात है कि माना आसानी से मजूर न करेगी। वह इस घर में ठोकरें खायगी, झिड़कियाँ सहेंगी, गालियां सुनेगी; पर