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मानसरोवर


इसी घर में रहेगो। युगों के संस्कारों को मिटा देना आसान नहीं है, लेकिन हमें उसको राज़ी करना पड़ेगा। उसके मन में सचित सरकारों को निकालना पड़ेगा। मैं विधवाओं के पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं। मेरा खयाल है कि प्रतिव्रत का यह अलो- किक आदर्श संसार का अमूल्य रत्न है और हमें बहुत सोच-समझकर उस पर आघात करना चाहिए, लेकिन मानो के विषय में वह बात हो नहीं उठती। प्रेम और भक्ति - नाम से नहीं, व्यक्ति से होती है। जिस पुरुष की उसने सूरत भी नहीं देखो, उससे उसे प्रेम नहीं हो सकता। केवल रस्म की बात है। इस आडम्बर को, इस दिखावे को, हमें परवाह करनी चाहिए। देखो, शायद कोई तुम्हें बुला रहा है। मैं भी चाहता हूँ। दो-तीन दिन में फिर मिलूंगा ; मगर ऐसा न कही कि तुम संकोच में पड़कर, सोचते-विचारते रह जाओ और दिन निकलते चले जाय।

गोकुल ने उसके गले में हाथ डाल कर कहा -मैं परसों खुद हो आऊँगा।

( ४ )

बरात विदा हो गई थी। मेहमान भी रुखसत हो गये। रात के नौ बज गये थे विवाह के बाद को नौद मशहूर है। घर के सभी लोग सरेशाम से सो रहे थे। कोई चारपाई पर, कोई तख्त पर, कोई जमीन पर, जिसे जहां जगह मिल गई, वहीं सो रहा था। केवल मानो घर की देख-भाल कर रही थी, और ऊपर गोकुल अपने कमरे में धैठा हुआ समाचार पढ़ रहा था।

सहसा गोकुल ने पुकारा --- मानी, एक ग्लास ठंडा पानी तो लाना, बड़ी प्यास लगी है।

मानी पानी लेकर ऊपर गई और मेज़ पर पानी रखकर लौटा ही चाहतो थो कि गोकुल ने कहा --- जरा ठहरो मानी, तुमसे कुछ कहना है।

मानी ने कहा --- अभी फुरसत नहीं है भाई, सारा घर सो रहा है। कहीं कोई शुस आये तो लोटा-थाली भी न बचे।

गोकुल ने कहा --- धुप आने दो, मैं तो तुम्हारी जगह होता तो चोरों से मिल- कर चोरी कावा देता। मुझे इसी वक इन्द्रनाथ से मिलना है। मैंने उससे आज मिलने झा वचन दिया है-देखो सकोच मत करना, लो बात पूछ रहा हूँ उसका जल्द उत्ता देना। देर होगो तो वह घबरायगा। इन्द्रनाथ को तुमसे प्रेम है, यह तुम जानती हो न?