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धिक्कार

मखनी ने मुंह फेरकर कहा --- यह बात कहने के लिए मुझे बुलाया था। मैं कुछ नहीं जानती।

गोकुल --- खैर, यह वह जाने और तुम जानो। वह तुमसे विवाह करना चाहता है । वैदिक रीति से विवाह होगी। तुम्हें स्वीकार है ?

मानी की गर्दन शर्म से झुक दाई। वह कुछ जवाब न दे सकी।

गोकुक ने फिर कहा --- दादा और अम्माँ से यह बात नही हो गई, इसका कारण तुम जानत हो हो। वह तुम्हें चुड़कियाँ दे-देकर, जला-जलाकर चाहे मार डालें ; पर विवाह करने की सम्प्रति कभी न देंगे। इससे उनकी नाक कट ज्ञायगी, इसलिए अब इसका निर्णय तुम्हारे हो ऊपर है। मैं तो समझता हूँ, तुम्हें स्वोकार कर लेना चाहिए। इन्द्रनाथ तुमसे प्रेम तो रता है हो, यो भी निकलक चरित्र को आदमी है और बला का दिलेर। भय तो उसे छू ही नहीं गया। मुझे तुम्हें सुखी देखकर सच्चा आनन्द होगा। मानी के हुदय में एक वेग उठ रहा था ; अगर मैं इसे अवाज़ न निकली।

गोकुल ने अब की खीझकर कहा --- देखो, मानी यह चुप रहने का समय नहीं है। सोचती क्या हो।

मौनी ने काँपते हुए स्वर में कहा --– हाँ ।

गोकुल के हृदय का बोझ हलका हो गया। मुसकिराने लगा। मानी शर्म के मारे वहाँ से भाग गई।

( ५ )

शाम को गोकुल ने अपनी माँ से कहा --- अम्माँ, इन्द्रनाम के घर आज कोई उत्सव है। उसको माता अकेली घबड़ा रही थी कि कैसे सब काम होगा। मैंने झा, मैं भानी को भेज दें । तुम्हारी आज्ञा हो तो मानो को पहुंचा। कल-परसों तक चली आवेगी।

मानी उसी वक्त वह आ गई। गोकुल ने उसकी ओर कनखियों से ताशा। मानी लज्जा से गड़ गई। भागने का रास्ता न मिल।

माता ने कहा --- सुझसे क्या पूछठे हो, वह जाय ले जाय।

गोकुल ने मानी से कहा --- कपड़े पहनकर तैयार हो जावे, तुम्हें इन्द्रनाथ के घर चलना है।