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धिक्कार

माता ने किताब खोलते हुए कहा --- इतनी रात तक क्या करने लगे ? उसे भी क्यों न लेते आये, कल सवेरे चौका-बरतन कौन करेगा ?

गोकुल ने सिर झुकाकर कहा --- वह तो अब शायद लौटकर न आवे अम्माँ। उसके वहीं रहने का प्रबन्ध हो गया है।

माता ने आँखें फाड़कर कहा --- क्या बकता है, भला वह वहाँ के रहेगो ?

गोकुल --- इन्द्रनाथ से उसका विवाह हो गया है।

माता मानों आकाश से गिर पड़ीं। उन्हें कुछ सुध न रहो कि मेरे मुँह से क्या निकल रहा है, कुलगार, भडुवा, हरामजादा, और न जाने क्या-क्या कहा। यहां तक कि गोकुल का धैर्य चरम सीमा को उल्लंघन कर गया। उसका मुंह लाल हो गया, त्योरियां चढ़ गई । बोला --- अम्माँ, बस करो, अब मुझमें इससे ज्यादा सुनने को सामर्थ्य नहीं है। मगर मैंने कोई अनुचित कर्म किया होता, तो आपको जूतिया खाकर भी सिर न उठाता ; मगर मैंने कोई अनुचित कर्म नहीं शिया। मैंने वही डिया जो ऐसो दशा में मेरा कर्तव्य था और जो हर एक भले आदमो को करना चाहिए। तुम मूर्ख हो, तुम्हें कुछ नहीं मालूम कि समय की क्या प्राति है। इसी लिए तक मैंने धैर्य के साथ तुम्हारी गालियां सुनौं। तुमने, और मुझे दुख के साथ कहना पड़ता है कि पिताजी ने भो, मानो के जोवन को नारकीय मा रखा था। तुमने उसे ऐसी-ऐसी ताइनाएं दो जो कोई अपने शत्रु को भो न देगा। इसो लिए न कि वह तुम्हारी आश्रित थी ? इसी लिए न कि वह अनाथिनो थो ? अब वह तुम्हारो गालियां खाने न आवेगी। जिस दिन तुम्हारे घर में विवाह का उत्सव हो रहा था, तुम्हारे हो एक कठोर वाक्य से आहत होकर वह आत्महत्या करने जा रही थी। इन्द्रनाथ उस समय ऊपर न पहुँच जाते तो आज हम, तुम और सारा घर हवालात में बैठे होते।

माता ने आंखें मटकाकर कहा --- आहा ! कितने सपूत बेटे हो तुम कि सारे घर को संकट से बचा लिया। क्यों न हो। सो बहन को पारो है। कुछ दिन में मुके ले जाकर किसी के गळे बाँध आना। फिर तुम्हारी चाँदो हो जायगो। यह रोजगार सब से अच्छा है। पढ़-लिखकर क्या करोगे।

गोकुल मर्म-वेदना से तिलमिला उठा। व्यथित कठ से बोला-श्वर न करे कि कोई बालक तुम जैसी माता के गर्भ से जन्म ले। तुम्हारा मुंह देखना भो पाप है।

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