पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२६
मानसरोवर


रग्घू---मुझे चिढ़ा मत। तेरे पीछे मैं भी बदनाम हो रहा हूँ। जब तू किसी की होकर रहना नहीं चाहती, तो दूसरे को क्या गरज़ है, जो मेरी खुशामद करें। जाकर काकी से पूछ, लड़के आम चुनने गये हैं, उन्हें पकड़ लाऊँ ?

मुलिया अँगूठा दिखाकर बोली---यह जाता है। तुम्हें सौ बार गरज हो, जाकर पूछो।

इतने में पन्ना भी भीतर से निकल आई। रग्घू ने पूछा---लड़के बगीचे में चले गये काकी, तू चल रही है।

पन्ना---अब उनका कौन पुछत्तर है। बगीचे में जायँ, पेड़ पर चढ़े, पानी में डूबें। मैं अकेली क्या-क्या करू ?

रग्घू---जाकर पकड़ लाऊ।

पन्ना---जब तुम्हें अपने मन से नहीं जाना है, तो फिर मैं जाने को क्यों कहूँ ? तुम्हें रोकना होता, तो रोक न देते है तुम्हारे सामने ही तो गये होंगे ?

पन्ना की बात पूरी भी न हुई थी कि रग्घू ने नारियल कोने में रख दिया और चाय की तरफ़ चला।

( ६ )

रग्घू लड़कों को लेकर बस से लौटा, तो देखा, मुलिया अभी तक झोंपड़े में खड़ी है। बोली--- तू जाकर खा क्यों नहीं लेती। मुझे तो इस बेला भूख नहीं है।

मुलिया ठिकर बोली---हाँ, भूख क्यों लगेगी। भाइयों ने खाया, वह तुम्हारे पेट में पहुँच ही गया होगा।

रग्घू ने दांत पीसकर कहा---मुझे जला मत मुलिया, नहीं अच्छा न होगा। खाना वही भाग नहीं जाता। एक बेला ने खाऊंगा, तो मर न जाऊँगा। क्या तू समझती है, घर में आज कोई छोटी बात हो गई है ? तूने घर में चूल्हा नहीं जलाया, मेरे कलेजे में आग लगाई है। मुझे घमड था कि और चाहे कुछ हौ नाय, पर मेरे घर फुट का रोग न आने पावेगा। पर तूने मेरा घमंड चूर कर दिया। परालब्ध की बात है।

मुलिया तिनककर बोली--- सारा मोह छोह तुम्हीं की है कि और भी किसी को है ? मैं तो किसी को तुम्हारी तरह बिसूरते नहीं देखती।

रग्घू ने ठँडी साँस खीचकर कहा---मुलिया, घाव पर नौन न छिड़क। तेरेही