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कायर

'जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन तुम मुझे जीती न देखोगे ।'

'मैं यह नहीं कहता कि ऐसा होगा हो ; लेकिन होना सम्भव है।'

'तो अब ऐसा होना है, तो इससे तो यही अच्छा है कि हमी इसका प्रबन्ध करें। जब नाक हो कट रही है, तो तेज छुरी से क्यों न कटे। कल केशव ' बुलाकर देखो, क्या कहता है।'

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केशव के पिता सरकारी पेन्शनर थे, मिजाज के चिड़चिड़े और कृपण। धर्म के आडम्बरों में ही उनके चित्त को शान्ति मिलतो धो। कल्पनाशक्ति का अभाव था। किसी के मनोभावों का सम्मान न कर सकते थे। वे अब भो उस संसार में रहते थे, जिससे उन्होंने अपने बचपन और जवानो के दिन काटे थे। नवयुग को बढतो हुई लहर को वे सर्वनाश कहते थे, और कम-से-कम अपने घर को दोर्नो हाथों और दोनों पैरों का जोर लगाकर उससे बचाया रखना चाहते थे, इसलिए जब एक दिन प्रेमा के पिता उनके पास पहुंचे, और केशव से प्रेमा के विवाह का प्रस्ताव किया, तो बूढ़े पण्डितजी अपने आपे में न रह सके। धुंधली आँखें फाड़कर बोले-भाप भंग तो नहीं खा गये हैं। इस तरह का सम्बन्ध और चाहे जो कुछ हो, विवाह नहीं है। मालूम होता है, आपको भी नये जमाने की हवा लग गई।

बूढ़े बाबूजी ने नम्रता से कहा-मैं खुद ऐसा सम्बन्ध नहीं पसन्द करता। इस विषय में मेरे भो वही विचार हैं, जो आपके , परमात ऐसो आ पड़ी है कि मुझे विवश होकर भापकी सेवा में आना पड़ा। आज-कल के लड़के और लड़कियां कितने स्वेच्छाचारी हो गये हैं, यह तो आप जानते ही हैं। हम चूड़े लोगों के लिए अब अपने सिद्धान्तों की रक्षा करना कठिन हो गया है। मुझे भय है कि कही ये दोनों निराश होकर अपनी जान पर न खेल नाय।

बूढ़े पण्डितजी जमीन पर पांच पटकते हुए गरज उठे-आप क्या कहते हैं, पाहम ! आपको शरम नहीं भातो। हम ब्राह्मण हैं, और ब्राह्मणों में भी कुलीन। ब्राह्मण कितने हो पतित हो गये हों, इतने मर्यादाशुन्य नहीं हुए हैं कि बनिए अवालों को लड़को से विवाह करते फिरें! भिस दिन कुलीन ब्राह्मणों में लड़कियां न रहेंगी, उन दिन यह समस्या उपस्थित हो सकती है। मैं कहता हूँ, आपको मुझसे यह बात कहने का साइन कैसे हुआ ?

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